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उफ़ ये उलझन

‘मेरी लाइफ बाकी टीनएजर्स जैसी क्यों नहीं है?’

अंजना (14) की माँ की तबियत पिछले काफी समय से ठीक नहीं है। अंजना सोचती है कि उसका जीवन बाकी टीनएजर्स की तरह क्यों नहीं हो सकता- जो घर से अलग अलग तरह का टिफ़िन लेकर आते हैं, वीकेंड पर अलग अलग तरह के मज़े करते हैं और गर्मियों की छुट्टी में घूमने भी जाते हैं।

मेरी लाइफ बाकी टीनएजर्स जैसी क्यों नहीं है?

मैं ही क्यों?

अंजना की सबसे अच्छी दोस्त रोशनी आज घर आई थी। उसने अगले सप्ताह अंजना को अपने जन्मदिन की पार्टी में बुलाया। पर अंजना खुश नहीं है। वो रौशनी के साथ और समय बिताना चाहती थी पर उसको अब रात का खाना बनाना था। तो उसने रौशनी को धन्यवाद बोला और उससे विदा ले ली। 

“सोमवार को स्कूल में मिलते हैं”, रोशनी ने जाते हुए कहा।

अंजना ने अभी कपड़े तह करके संभाले ही थे कि अब खाना बनाने का समय हो गया था। “मेरी ज़िंदगी रोशनी जैसी क्यों नहीं हो सकती?” उसने सोचा। तभी उसका छोटा भाई ईशान उसके कमरे में आया और बोला, “मुझे भूख लगी है दीदी”।

अंजना का खाना बनाने का बिल्कुल मन नहीं था। “तुम हमेशा ही भूखे होते हो, इशू। मैं खाना बना बना कर और घर के सारे काम कर के थक गई हूँ। मुझे समझ नहीं आता कि मेरी ज़िन्दगी बाकी लोगों जैसी क्यों नहीं हो सकती”, उसने कहा और रोती हुई रसोई में चली गई।

आज शनिवार था, पर अंजना के लिए शनिवार और सोमवार में कोई फर्क नहीं रह गया था। 

उसके दोस्त – रोशनी, प्रेरणा, ख्याति, समक्ष मज़ेदार लाइफ जी रहे थे। पर अंजना की ज़िंदगी बहुत अलग थी। करीब छह महीने पहले उसकी माँ बीमार होकर हॉस्पिटल में भर्ती थी। उसके बाद से घर की सारी ज़िम्मेदारियाँ – ईशान की देखभाल करना, खाना बनाना, कपड़े धोना, सफाई करना और यहाँ तक की सब्ज़ियाँ और राशन इत्यादि भी उसे ही लानी पड़ता था। 

वह बहुत निराश महसूस कर रही थी और उसके पापा जब हॉस्पिटल से वापस आए तो उन्होंने उसे किचन में रोता हुआ पाया। 

मुझे अपनी ज़िंदगी से नफरत है 

“पापा, मेरी लाइफ बाकी बच्चों जैसे क्यों नहीं हो सकती?” उसने कहा और फूट फूट कर रोने लगी।

पापा उसके करीब आए लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। वो चुपचाप उसकी बात सुनने लगे। 

“मेरे बाल इतने खराब हैं कि मेरी चोटी भी अच्छी नहीं बनती! हर कोई अपने टिफ़िन में हर रोज़ कुछ नया लाता है और मेरे पास हर रोज़ सिर्फ ब्रेड होती है। हर कोई बाहर खेल रहा है और मैं बर्तन धोने और घर के बाकी काम करने में व्यस्त हूँ”, अंजना रो पड़ी।

“मैं रोज़ के इन कामों से थक चुकी हूँ पापा। मुझे दूसरे बच्चों से जलन होती है! नफरत हैं मुझे इस लाइफ से”, अंजना ने सिसकते हुए कहा। 

पापा ने अंजना को गले लगा लिया। उन्होंने मेज़ पर एक पैकेट रखा और उससे शांत होने को कहा। “अंजू, मैं आज का खाना बाहर से लाया हूँ। तुम्हारा पसंदीदा पास्ता और ईशान का पसंदीदा – नूडल्स। तुम्हें आज खाना बनाने की ज़रूरत नहीं है बेटा”, कह कर वो वहाँ से चले गए।

यही सुनने की ज़रूरत थी

अंजना रात के खाने के बाद अपने कमरे में जाकर सोने की कोशिश कर रही थी जब पापा ने दरवाज़ा खटखटाया। कमरे में आकर वो धीरे से बोले, “अंजू, माँ और मुझे तुम पर गर्व है। ऐसा एक भी दिन नहीं होता  जब वो हॉस्पिटल में तुम्हारे बारे में सबको नहीं बताती। और ईशान तो कहता है कि तुम दुनिया की सबसे अच्छी बहन हो। अगर तुम न होती तो मैं मम्मी की इतने अच्छे से देखभाल नहीं कर पाता”।

“मुझे पता है कि तुम बहुत कुछ कर रही हो और तुम्हारे सर पर बहुत सी ज़िम्मेदारियाँ हैं। इसलिए मैंने कुछ महीनों के लिए नानी को यहाँ बुला लिया है। इससे तुम्हें कुछ मदद और मन की शांति भी मिलेगी।”

अंजना अपनी नानी के आने की खबर सुनकर खुश हुई और मुस्कुरायी।

“अंजू बेटा, ज़िंदगी में मुश्किलें आती है पर वो हमे बहुत कुछ सिखाती भी हैं। तुम खुद ही देखो, तुम अब कितनी ज़िम्मेदार बन चुकी हो। तुम्हें क्या लगता है, तुम्हारी किसी भी दोस्त को एक बजट में घर चलाना आता होगा? जब तुम घर पर होती हो तो मुझे किसी बात की चिंता नहीं होती। तुम बड़ी होकर एक अच्छी और समझदार इंसान बनोगी जिसे मुश्किलों का सामना करना भी आता होगा। बस याद रखो की ये वक़्त भी गुज़र जाएगा।”

“थैंक यू पापा और मुझे मेरे व्यवहार के लिए माफ़ कर दीजिये। मैं जानती हूँ कि ये बस थोड़े समय की बात है और फिर माँ वापस घर जायेंगीं”। पापा से बात करके अंजना अब बहुत बेहतर महसूस कर रही थी। ये सुनकर कि उसके मम्मी-पापा को उस पर गर्व है, अंजना को बहुत अच्छा लगा। आज शायद उसको यही सुनने की ज़रूरत थी।

यही सुनने की ज़रूरत थी

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