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उफ़ ये उलझन

स्टेज पर जाते ही डर क्यों लगने लगता है?

रिद्धि (17) को जब भी लोगों के सामने या स्टेज बोलना होता, तो उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगता और दिमाग पूरी तरह से खाली हो जाता। लेकिन आखिरकार, उसने समझ लिया कि ऐसा क्यों होता—और इससे कैसे निपटा जाए। उफ़ यह उलझन में जानो पूरी कहानी!

पहली बार जब बोलना पड़ा

मुझे आज भी याद है जब पहली बार मुझे क्लास के सामने बोलना पड़ा था। जैसे ही टीचर ने मेरा नाम पुकारा, मेरी हथेलियां ठंडी पड़ गईं, दिल तेज़ी से धड़कने लगा और दिमाग पूरी तरह से ब्लैंक हो गया।

मेरे मन में बस एक ही सवाल था—क्यों मैं?!

मुझे ऐसा लग रहा था कि काश मैं गायब हो जाऊं! लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ी, अपने क्लासमेट्स को घूरा, कुछ बड़बड़ाया और जल्दी से अपनी सीट पर लौट आई। उस वक्त मैं बस यही चाहती थी कि कोई भी मुझे याद न रखे।

अगर तुम्हारे साथ भी ऐसा हुआ है, तो यकीन मानो, तुम अकेले नहीं हो।

स्टेज फ्राइट का विज्ञान

बाद में पता चला कि जो मैंने उस दिन महसूस किया था, वह पूरी तरह से नॉर्मल था। हमारा दिमाग ऐसे मौकों पर इस तरह से रिएक्ट करता है, जब हमें लगता है कि कोई हमें जज कर रहा है।

इसे “फाइट-या-फ्लाइट रिस्पॉन्स” कहते हैं—यह शरीर की स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है जब उसे कोई खतरा महसूस होता है। हालांकि, स्टेज पर खड़ा होना असल में कोई जानलेवा स्थिति नहीं है, लेकिन हमारा दिमाग इसे एक सर्वाइवल सिचुएशन की तरह मान लेता है। यह एड्रेनालिन जैसे स्ट्रेस हॉर्मोन रिलीज करता है, जिससे हमें पसीना आता है, शरीर कांपता है और बोलते समय शब्द भूल जाते हैं।

यह सिर्फ तुम्हारे साथ ही नहीं होता। शाहरुख खान और विराट कोहली जैसे बड़े सितारे भी मान चुके हैं कि उन्हें बड़े इवेंट्स से पहले घबराहट होती है। जब इतने बड़े लोग भी नर्वस होते हैं, तो यह हमारे लिए भी नॉर्मल है। फर्क सिर्फ इतना है कि उन्होंने इसे कंट्रोल करना सीख लिया।

इस डर से कैसे बाहर निकलें?

सालों तक मैं पब्लिक स्पीकिंग से बचती रही, लेकिन फिर मेरी मम्मी ने जबरदस्ती मुझे थिएटर क्लास जॉइन करवा दी। उनका कहना था कि इससे मेरी झिझक कम होगी। शुरुआत में मुझे लगा कि यह बेकार होगा, लेकिन धीरे-धीरे चीजें बदल गईं।

यहां कुछ ऐसी बातें हैं, जो मेरे लिए काम आईं—

1. तैयारी करो, लेकिन ओवरथिंक मत करो

जब मैं अच्छी तैयारी करके जाती थी, तो मुझे ज़्यादा कॉन्फिडेंस महसूस होता था। लेकिन मैंने यह भी सीखा कि हर शब्द याद करने की कोशिश करने से ज़्यादा नर्वसनेस होती है। बेहतर यह था कि मैंने सिर्फ मेन पॉइंट्स पर ध्यान दिया और नैचुरल तरीके से बोला।

2. आईने के सामने या पालतू जानवर के साथ प्रैक्टिस करो

मैंने आईने के सामने खड़े होकर बोलने की प्रैक्टिस शुरू की। कभी-कभी, मैं अपने कुत्ते के सामने भी बोलती थी—वह मुझे जज नहीं करता था। इससे मेरी झिझक कम होने लगी और अपनी आवाज़ सुनने की आदत बन गई।

3. नर्वसनेस कम करने के लिए गहरी सांस लो

बोलने से पहले, मैंने 4-4-4 ब्रीदिंग टेक्नीक अपनाई—4 सेकंड तक सांस अंदर लो, 4 सेकंड तक रोको, और फिर 4 सेकंड में छोड़ो। इससे मेरा दिल तेज़ धड़कना बंद हो जाता था और मैं ध्यान केंद्रित कर पाती थी।

4. कॉन्फिडेंस का नाटक करो, जब तक वह सच न हो जाए

मैंने एक बार पढ़ा था कि अगर तुम सीधे खड़े हो, आंखों में आंखें डालकर बात करो, और धीरे-धीरे बोलो, तो दिमाग खुद को कॉन्फिडेंट मानने लगता है। मैंने इसे आज़माया—और यह सच में काम कर गया।

5. याद रखो, कोई भी तुम्हें फेल होते हुए नहीं देखना चाहता

पहले मुझे लगता था कि अगर मैंने गलती की, तो सब मुझ पर हंसेंगे। लेकिन असल में, ज़्यादातर लोग इतने ध्यान से सुन भी नहीं रहे होते—कुछ अपने ही ख्यालों में खोए होते हैं, तो कुछ अपने फोन में।

फिर क्या हुआ?

जब मैंने अगली बार किसी इवेंट में बोला, तो मैं अभी भी नर्वस थी। लेकिन इस बार, मैंने अपने डर को खुद पर हावी नहीं होने दिया। मैंने गहरी सांस ली, हल्की सी मुस्कान रखी और बोलना शुरू किया।

क्या मैं परफेक्ट थी? नहीं।
क्या मैंने इसे अच्छे से संभाला? हां।
क्या यह हर बार आसान होता गया? बिल्कुल।

तो अगर तुम्हें भी कभी स्टेज फ्राइट महसूस होता है, तो याद रखो—अगर बड़े सितारे इससे जूझ सकते हैं, तो तुम भी इसे हरा सकते हो। बस एक बार में एक कदम आगे बढ़ाओ।

और कौन जाने, एक दिन हम तुम्हें भी टीवी पर एक स्पीच देते हुए देखें!

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