‘तुम्हें क्यूट लड़कों को डेट करना चाहिए’
ट्विंकल (20) ने अपनी चाची को जब बताया कि उसे लड़कियां पसंद हैं तो उसकी चाची ने उसे लड़कों को डेट करने की सलाह दी। क्या उन्हें ठीक से सुना नहीं या उनको ट्विंकल की बात समझी नहीं? ट्विंकल ने टीनबुक के साथ अपनी डायरी का एक पन्ना साझा किया।
खुद की तलाश
प्यारी डायरी,
जब मैं छोटी थी, मुझे फ्रॉक पहनने से नफरत थी, बार्बी भी अच्छी नहीं लगती थी, और नाखूनों में नेलपॉलिश लगाने से तो सख्त चिढ! मेरी मम्मी मुझे टॉमबॉय बुलाती थीं। मैं दुबई में अपने परिवार के साथ रहती थी।
जब टीनएज में पहुंची तो मैं स्कूल की अपनी सबसे पक्की सहेली ख़ुशी को बहुत लाइक करने लगी। मेरी ये फीलिंग्स बहुत अजीब थीं लेकिन उसे देखते ही मेरे पेट में उमड़ घुमड़ होने लगती।
उसी समय के दौरान मैंनें ‘समरटाइम‘ – लेस्बियन्स के रूमानी रिश्तों पर आधारित – एक फिल्म देखी और अचानक ख़ुशी के प्रति मेरी भावनाएं मुझे समझ में आने लगीं। मेरा उस पर क्रश था!
उस मूवी को देखते हुए, मैं खुद को समझाती रही , ‘नहीं नहीं ट्विंकल, पापा को पता चला तो वह बहुत ज़्यादा भड़क जायेंगे!’
पर मैं लड़कियों के प्रति अपनी फीलिंग्स को कण्ट्रोल नहीं कर पायी। हर बार मैं जब भी घर में अकेली होती, मैं सेक्सुअल ओरिएंटेशन वाली और फिल्में ढूंढ कर देखने लगी।यह मेरे लिए बहुत ही सुकून भरी बात थी कि मैं अकेली ही ऐसी नहीं थी जिसे लड़की होने के बावजूद लड़कियां ही पसंद थीं। मेरे जैसे और भी लोग थे और हाँ अब यह शब्द ‘लेस्बियन’ (समलैंगिक) मेरे दिमाग में तूफ़ान मचा रहा था।
मैं इस सोच में थी कि इस विषय को अपने परिवार के सामने कैसे लाऊं। एक बार मैंने अपने माता–पिता के सामने एक लेस्बियन मूवी लगायी, सिर्फ उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए। मगर मेरा दिल टूट गया जब मेरे पापा ने कहा, ‘इस तरह की चीज़ (लेस्बियन होना) उन बच्चों के साथ होती है जिनके माता–पिता ने अपनी ज़िंदगी में कुछ बड़े पाप किये होते हैं। ‘
कई दिनों तक मैं उनकी इस बात से परेशान रही। अब मैं अपने ही घर में बेचैन थी और अपनी स्थिति के बारे में सोचते हुए मैनें बहुत सी रातें जागते हुए काटीं। मुझे अपने ऊपर शर्म भी आ रही थी।
क्लास की वह लड़की
2020 में, कोरोनावायरस महामारी से हम सभी की ज़िंदगी प्रभावित हुई और मेरे पापा ने इंडिया मूव होने का आकस्मिक निर्णय लिया। मैं खुश थी क्योंकि इंडिया में दुबई की तुलना में एलजीबीटी सम्प्रदाय के लिए ज़्यादा खुलापन था।
मुंबई में होने की वजह से मेरी ज़िंदगी की एक नयी शुरुआत हुई। मैं अपनी ऑनलाइन क्लासेज़ और मेरे रिलेटिव्स चाचा–चाची, कज़िन आदि के संपर्क में बहुत खुश थी।
एक दिन हमारी टीचर ने ऑनलाइन क्लास में एलजीबीटीक्यू सम्प्रदाय के बारे में चर्चा करनी शुरू की। मुझे उम्मीद थी कि वही पुरानी बातें होंगी जैसे कि एलजीबीटी सम्प्रदाय को कैसे नकार दिया जाता है आदि, पर तभी एक लड़की, हमारी क्लासमेट, ने कुछ दिलचस्प शेयर किया। उसने कहा कि वह बाय सेक्सुअल है और उसे घर से बाहर निकाल दिया गया था। उसके माता–पिता ने उसे अपनाने से इंकार कर दिया।
मैं अंदर तक काँप गयी। जब उसने पूछा की क्या इस क्लास में कोई और एलजीबीटी लोग हैं ? मैं अपनी सच्चाई बताने ही वाली थी, पर मैंने ऐसा नहीं किया। इससे मेरी और उसकी ज़िंदगी में कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, मैंने सोचा।
मुझे लड़कियां पसंद हैं
इसी दौरान, मैं इंडिया में अपने कज़िन्स के साथ रहना एन्जॉय कर रही थी। मेरी चाची और उनकी बेटी शगुन, जो लगभग मेरी ही उम्र की थी, घर में मेरे सबसे करीब थे। छह महीने साथ रहकर हम बहुत ही करीब हो गए थे। हम बातें करते, टीवी देखते और शाम को सैर के लिए एक साथ बाहर जाते।
मैं अक्सर सोचती कि अगर मैं उन्हें सच्चाई बता दूँ तो क्या होगा। क्लास में हुई उस बात के बाद मैं किसी के साथ इसे शेयर करने के लिए बहुत अधीर थी। यह एक खुजली की तरह था। मुझे ज़रूर ही किसी को बताना था क्योंकि किसी के भी साथ इसे शेयर ना करने का बोझ बहुत ज़्यादा था।
मैं जानती थी कि मैं अपनी चाची और कज़िन पर इस सीक्रेट को लेकर विश्वास कर सकती हूँ। मैं मानसिक रूप से तैयार भी थी कि उन्हें मेरी भावनाएं समझ नहीं आएँगी। मगर फिर भी मैंने उन्हें बताने का निश्चय किया।
एक दिन जब हम अपनी रोज़ की शाम की सैर के लिए बाहर निकले, तो मैं बीच रास्ते में रुक गयी और उनसे कहा कि मेरी बात सुनें। ‘प्लीज़ मेरे मम्मी-पापा को इस बारे में मत बताना’, यह मेरे पहले शब्द थे। मेरी चाची और कज़िन असमंजस में थे पर ध्यान से सुन रहे थे। और तभी मैनें फ़टाक से बोल दिया, ‘मैं लेस्बियन हूँ, मुझे लड़के नहीं, लड़कियां पसंद हैं। ‘
शगुन समझ नहीं पायी कि क्या प्रतिक्रिया दे और मुझे एकटक घूरती रही, जिसकी वजह से मैं थोड़ी घबरा गयी पर मेरी चाची ने कहा,’ ओह कोई नहीं ! यह कोई गलत बात नहीं है’, वह आराम से चलती रहीं जैसे कि यह कोई बड़ी बात ना हो।
क्या सच में यही था? क्या उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा? क्या यह उनके लिए बिलकुल सामान्य बात थी? मैं सोचती रही कि क्या मैंने सही किया।
‘क्यूट लड़कों से दोस्ती करो’
मुझे लगता है कि मेरी चाची ने मेरी कही हुई बात को समझने के लिए कुछ वक्त लिया। अगले दिन, उन्होंने मुझे कहा, ‘तुम दुबई में लड़कियों के स्कूल में थीं। तुम्हें किसी लड़के के साथ होने या बातचीत करने के ज़्यादा मौके नहीं मिले होंगे।‘ तो यह बात थी। वह मेरे लेस्बियन होने के पीछे की ‘वजह’ ढूंढ़ने की कोशिश कर रहीं थीं। और अब उन्होंने उसे ढूंढ लिया था – लड़कों से मिलने के कम अवसर! तब उन्होंने मुझे सलाह दी कि मैं ‘क्यूट लड़कों‘ से मिलूं और उनके साथ डेट पर जाऊं। ‘ट्विंकल, यह सिर्फ एक फेज़ है, एक तरह का भ्रम, जो समय के साथ चला जायेगा‘, उन्होंने कहा।
चाची की इस प्रतिक्रिया ने मेरे डर को सच्चाई में बदल दिया। मेरी फीलिंग्स कभी भी किसी को समझ नहीं आएँगी। मैंने उनके साथ और बहस करना उचित नहीं समझा। मैं चुप रही जबकि वह मुझे यह समझाती रहीं कि किस तरह लड़कों के साथ समय बिताना है।
मैंने इस विषय पर फिर कभी बात नहीं की। उनका मेरी भावनाओं से इस तरह से पल्ला झाड़ लेने से मुझे चिढ़ हुई। उससे भी ज़्यादा चिढ़ मुझे उनकी मुझे ‘लड़कों में रूचि’ पैदा करने की कोशिश से हुई।
तबसे मेरा मन बहुत असुरक्षित महसूस कर रहा हैं। मेरा भविष्य कैसा होगा? यदि मैंने अपने माता–पिता को यह बताया तो क्या वे भी इसी तरह का व्यवहार करेंगे? क्या वे मेरी किसी लड़के से शादी करवा देंगे? यह तो शायद समय ही बताएगा। पर मुझे लगता है कि मुझे ऐसे ही जीना होगा – अपनी असली पहचान खुद में ही समेट कर।
गोपनीयता का ध्यान रखते हुए नाम बदल दिए गए हैं और फोटो में मॉडल् है।
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