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सुकून वाला कोना

आराम चाहिए, राजकुमार नहीं

याद है वो स्लीपिंग ब्यूटी की कहानी, वो राजकुमारी जो जादुई श्राप की वजह से सालों तक सोई रही? हम हमेशा सोचते थे कि

वो बस आलसी थी। लेकिन क्या हो अगर वो लेज़ी थी ही नहीं? इस ट्विस्ट वाली कहानी में जानिए कैसे थकान और ओवरलोड किसी को भी सोई-सोई प्रिंसेस बना सकते हैं।

बहुत समय पहले, एक राजकुमारी थी। उस पर कोई जादू नहीं हुआ था। न ही कोई बुरी परी आई थी, जो उसे हमेशा के लिए सुला दे।

फिर भी… वो दिन भर बस बिस्तर पर पड़ी रहती थी। मोबाइल में बिना मतलब के रील्स देखती रहती, जो उसे मज़ेदार भी नहीं लगती थीं।

राज्य के लोग आपस में बातें करने लगे थे  –
“ये तो आलसी हो गई है।”
“अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर रही है।”
“बाकी राजकुमार और राजकुमारियाँ कितना कुछ कर रहे हैं। ये क्यों नहीं कर सकती?”

राजकुमारी ने ये बातें सुनीं। और बुरा ये था कि ये बातें उसके दिमाग में भी गूंजने लगीं।
हर सुबह वो सोचती थी – “आज अलग होगा। आज मैं पढ़ाई करूँगी, दोस्तों से मिलूँगी, बाल सजाऊँगी।”
लेकिन जब करने का वक्त आता, उसका शरीर इतना भारी लगता कि उठना ही मुश्किल हो जाता। उसका मन भी धुंधला-सा हो गया था।

उसको अपनी पसंदीदा मूवी पर भी अब हँसी नहीं आती थी। दोस्तों के मैसेज, जिनसे वो पहले खुश हो जाती थी, अब उसे बोझ लगते थे। बाल बनाना, जिस पर उसे गर्व था, अब बहुत बड़ी मेहनत लगती थी।

और इस जादू का सबसे बुरा हिस्सा? था गिल्ट मतलब पछतावा।
जब वो आराम करती थी, तो उसका दिमाग कहता था – “कितनी आलसी है। सब कर रहे हैं, तो तुम क्यों नहीं?”
जब वो फोन स्क्रोल करती थी, तो उसके अंदर की आवाज़ कहती – “देखो, अनजान लोग भी तुमसे ज़्यादा काम कर रहे हैं।”

लोगों को लगता था कि राजकुमारी बस सो रही है। लेकिन सच्चाई ये थी – वो सो नहीं रही थी। वो बर्नआउट हो चुकी थी।

एक शाम, गिल्ट से परेशान होकर, उसने कुछ नया किया। नहीं, उसने किसी राजकुमार का इंतज़ार नहीं किया। उसने एक डायरी उठाई और लिखना शुरू किया – अपने खालीपन के बारे में, थकान के बारे में, यहाँ तक कि टहलने तक की हिम्मत न होने के बारे में।

उसने माना कि वो बस होमवर्क से नहीं बच रही थी। वो सब से बच रही थी – दोस्तों से, अपने शौक़ से, और खुद से भी।

लिखते-लिखते उसे समझ आया – ये आलस नहीं है। ये कुछ और है। कुछ गहरा।

उसे एक लाइन याद आई –
आलस = करने का मन ही न होना।
बर्नआउट = करने का मन होना, लेकिन ताकत ही न होना।

अब सब साफ़ था। वो कमज़ोर नहीं थी। वो लापरवाह नहीं थी। वो बस थक चुकी थी।

उसका दिमाग रोज़-रोज़ दौड़ रहा था – नंबरों की चिंता, आगे की चिंता, लोग क्या सोचते हैं इसकी चिंता, दूसरों से तुलना। और जो “ब्रेक” लेती थी, वो भी असली ब्रेक नहीं थे, बस मोबाइल स्क्रोल करना, जिससे और थकान हो जाती।

अब उसे समझ आया कि उसे किसी परी ने श्राप नहीं दिया। उसे अपनी ही टेंशन और ओवरथिंकिंग ने फँसा रखा था। और ऐसा जादू किसी किस से नहीं टूटता।

तो हाँ, स्लीपिंग ब्यूटी को किसी राजकुमार की ज़रूरत नहीं थी। उसे आराम चाहिए था। छोटी-छोटी चीज़ें चाहिए थी – जैसे किसी पहाड़ को छोटे-छोटे कंकड़ों में तोड़ देना। 

असली ब्रेक चाहिए थे – ताज़ी हवा में साइकिल चलाना, कुत्ते के साथ खेलना, भाई को चिढ़ाना या मज़े के लिए किताब पढ़ना। और सबसे ज़रूरी – खुद के साथ प्यार से रहना। 

धीरे-धीरे, दिन-ब-दिन, जादू हल्का होने लगा।
वो तुरंत ठीक नहीं हुई। कुछ दिन अभी भी बिस्तर पर पड़ी रहती, छत को देखती और सोचती कि पीछे तो नहीं छूट रही।
लेकिन अब वो गिल्ट में डूबती नहीं थी। वो खुद को । खुद को याद दिलाती – आराम करना = हारना नहीं होता।

शायद यही कहानी का असली सबक है –
स्लीपिंग ब्यूटी आलसी नहीं थी। वो बर्नआउट हो चुकी थी।
और उसे राजकुमार नहीं चाहिए था। उसे चाहिए था – आराम, धैर्य और मदद माँगने की हिम्मत।

समाप्त।

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