क्यों टीनएजर्स दिल से ज्यादा और दिमाग से कम सोचते हैं?
क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारे इमोशन कभी-कभी तुम्हारे खुद के दिए तर्क/लॉजिक पर हावी क्यों हो जाते हैं? इस साइंस लैब आर्टिकल में रिधिमा ने अपने टीनएजर के दौरान दिल और दिमाग के बीच की उधेड़बुन को साझा किया है। तो आइए टीनएज में होने वाली इस अनबन को समझते हैं।
व्यस्क और टीनएजर का दिमाग
इन इमोशन के बवंडर के बारे में क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम कुछ खास ऑप्शन क्यों चुनते हो? जैसा कि प्रसिद्ध फिल्म ‘केमिकल हार्ट्स’ का एक डायलॉग है – किशोर दिमाग पूरी वयस्कता पहुंचने से पहले एक बड़े अपग्रेड से गुजरता है। यह एक ऐसा दौर है जिसमें दिमाग में एक तब्दीली आती है, जो तुम्हें सही और गलत, पसंद और नापसंद और तुम क्या बनना चाहते हो, इसका पता लगाने में मदद करता है। स्टैनफोर्ड की एक रिसर्च में यह भी कहा गया है कि 25 वर्ष या उससे अधिक की उम्र तक टीनएजर्स के दिमाग का एक हिस्सा – जिससे सही और गलत का पता लगाया जाता है – पूरी तरह से विकसित नहीं होता है।
इस अधय्यन में यह भी पाया गया है कि एडल्ट और टीनएजर का दिमाग अलग-अलग तरह से काम करता है। एडल्ट मस्तिष्क के तर्कसंगत भाग – प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स के साथ सोचते हैं। यह दिमाग का वह हिस्सा है, जो अच्छे डिसिजन और उन डिसिजनों के लंबे परिणामों के बारे में जागरूक होता है। यानी की पता होता है कि किसी डिसिजन का आगे चल कर क्या असर पड़ेगा। टीनएजर्स इस तरह के चीजों के बारे में अमिगडाला नामक दिमाग के एक हिस्से के जरिए सोचते हैं – जो की इमोशन वाला हिस्सा है।
मैं असल में क्या सोच रही थी?
टीनएजर्स सोचते कम और महसूस ज़्यादा करते हैं। ठीक उसी तरह जैसे की रणवीर सिंह अपने खास डॉयलॉग बोलते हुए खो से जाते हैं! इसलिए, जब इमोशन्स हावी हो जाते हैं, तो यह सोच समझ के नहीं होता – बस सब फील किया जाता है!
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने स्मार्ट हो या तुम अपनी क्लास में कैसा प्रदर्शन कर रहे हो या SAT या ACT जैसे परीक्षाओं में कितना अच्छा स्कोर करते हो। अच्छा डिसिजन लेना ऐसी चीज़ नहीं है, जिसमें तुम एक दिन में महान बन जाओ। कम से कम टिनएज में तो बिल्कुल भी नहीं। टीनएज के दौरान सही डिसिजन लेना एक पहेली हो सकता है। तुम्हारा दिमाग अभी भी बन ही रहा है और इमोशन और डिसिजन लेने के बीच समझ धीरे-धीरे बन ही रही है। ऐसे में जब तुम इमोशन्स में बह जाते हो, तो यह समझाना मुश्किल होता है कि तुम क्या सोच रहे थे।
ओके नहीं होना भी ओके है!
और जब तुम अधिक महसूस करते हो, तो अत्यधिक चिंता, नए लोगों से मिलने में घबराहट, लंबे समय तक उदासी और फोकस करने में मुश्किल आ सकती है। नींद, खाने की आदतों या रोजमर्रा के रुटीन कामों में बदलाव आ सकते हैं। ऐसे में समझ जाओ की अलर्ट होने का समय आ गया है। यदि कोई निगेटिव भावना कुछ हफ़्तों से अधिक समय तक बनी रहती है, तो यह डिप्रेशन जैसी अधिक गंभीर समस्या का संकेत हो सकता है। ऐसे में डॉक्टर से सलाह लेना जरुरी है। याद रखो कि आगे बढ़ने में कोई शर्म नहीं होनी चाहिए।
तुम्हारे मेंटल हेल्थ को बढ़ावा देने के लिए शारीरिक गतिविधि, संतुलित आहार और पर्याप्त नींद जरुरी है।
पैरेंट्स- तुम्हारे असली हीरो
क्या तुम्हें किसी मूवी का कोई सीन याद है, जहां एक्टर/एक्ट्रेस को परेशानी से बचाने में मां-पापा ने अहम भूमिका निभाई हो? ठीक उसी तरह, तुम्हारे मां-पापा भी यहां असली हीरो हो सकते हैं। मां-पापा तुम्हारे गुरु हैं, जो तुम्हारी स्क्रिप्ट के अनुसार तुम्हें सही रास्ता दिखा रहे हैं।
यहां तक कि जब ऐसा लगता है कि तुम उन्हें दूर कर रहे हो, तो तुम्हारे दिमाग में चल रहे कंफ्युजन को कम करने में वो तुमहारी मदद कर सकते हैं। आज की उनकी मदद तुम्हारे अच्छे कल के जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।
अगली बार जब तुम ब्रेकअप या परीक्षा में असफल होने के बाद अपने आप को दरवाज़ा बंद करके अपने कमरे के एक कोने में छिपा हुआ पाओ या उदासी से घिरे रहो या खाना खाने के मूड में न हो, तो अपने मां-पापा से बात करो और अपनी परेशानी दूर करो।
क्या आपके पास साइंस लैब के लिए कोई प्रश्न हैं? उन्हें नीचे टिप्पणी बॉक्स में पोस्ट करें। हम अपने आगामी लेखों में उन्हें जवाब देंगे। कृपया कोई पर्सनल जानकारी न डालें।
इसके बारे में और जानने के लिए नीचे दिय गया वीडियो ज़रूर देखें :