क्या तुम ठीक हो? बात अच्छा महसूस करने की
“कैसी हो आरुषी, क्या चल रहा है? सब ठीक-ठाक?” सियोना ने अपनी क्लासमेट आरुषि से यूँ ही पूछा, लेकिन आरुषि रोने लगी। सियोना हैरान हो गयी और उसने सोचा कि आरुषि एक मिनट पहले तो ठीक लग रही थी….. फिर रोई क्यों? वो पक्का परेशान है किसी बात को लेकर।
इस से पता चलता हैं कि भले ही हम ऊपर से ठीक दिखें, लेकिन हो सकता है की हम किसी से बात से परेशान हों और अंदर ही अंदर उससे झूझ रहे हो। आओ, इस बारें में थोड़ा डिटेल से जानते हैं कि शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक – रूप से अच्छा महसूस करने का क्या मतलब है। तुम्हारी उम्र में ये जानना इसलिए ज़रूरी है क्यूंकि किशोरावस्था अपने साथ कई नए उतार चढ़ाव लाती है।
पूरी तरह से ठीक होने का क्या मतलब है?
क्या कभी तुम्हारे साथ भी ऐसा हुआ की तुम किसी फ्रेंड से बात कर रहे हो और वो अचानक फूट-फूट कर रोने लगे। सियोना के साथ ऐसा ही हुआ, जब उसने आरुषि से पूछा कि वह कैसी है! अजीब है ना? आरुषि एक मिनट पहले बिल्कुल ठीक लग रही थी लेकिन दूसरे ही पल उसके आंसू नहीं रुके रहे थे।
तो, आओ इस बारे में बात करें कि पूरी तरह से ठीक होने का क्या मतलब है। खासकर टीनएज में जहां तुम एग्जाम , स्कूल के अन्य प्रेशर , फ्रेंड्स, माता पिता और लाइफ में आने वाली कई चीजों से निपट रहे हो। पूरी तरह से ठीक होने होने का मतलब सिर्फ बीमार न होना नहीं है – इसका मतलब यह है की तुम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक – सभी तरह से अच्छा महसूस करो! इसे कहते है होलिस्टिक वेल-बीइंग और इसके कई पहलू हैं। आओ और समझते हैं।
शारीरिक तंदुरुस्ती – अर्जुन की कहानी
तो, सबसे पहले बात करते हैं शारीरिक तंदुरुस्ती यानी कि फिजिकल वेल-बीइंग की। यानी की तुम्हारे शरीर को स्वस्थ और मजबूत रखने के बारे में बात। सही खाने, पर्याप्त नींद लेने और एक्टिव रहने से शारीरिक तंदुरुस्ती बनी रहती है। यह सब बातें तो तुमने बचपन से सुन ही रखी होंगी और यह भी की यह सब कितना ज़रूरी है। है ना? चलो हम इसको अर्जुन की कहानी से और समझने की कोशिश करते हैं।
मिलो कोलकाता के रहने वाले 16 साल के अर्जुन से, जिसकी समस्या यह है की – वो मोटापे से जूझ रहा है। एक ऐसी स्थिति जो ना केवल उसके शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है बल्कि उसके आत्मसम्मान को भी।
अर्जुन अक्सर अपने वजन के कारण लोगों के बीच हीन-भावना से ग्रसित रहता है क्योंकि सब उसका मजाक बनाते हैं। हाँ पता है – अर्जुन को एक्सरसाइज करनी चाहिए, लेकिन मुश्किल यह है की जितना अर्जुन को लोग चिढ़ाते हैं वो उतना ही फिजिकल एक्टिविटी से दूर होता जाता है, जिससे उसकी स्थिति और बिगड़ती जाती है। वो इस वजह से इस प्रॉब्लम से बाहर ही नहीं निकल पा रहा और उसका मोटापा कम होने की बजाये और बढ़ रहा है।
अर्जुन की कहानी से हमे यह बात समझ आती है कि शारीरिक स्वास्थ्य इतना महत्वपूर्ण क्यों है – खासकर उसके जैसे टीनएजर्स के लिए। यह सिर्फ़ एक निश्चित साइज़ की जींस में फ़िट होने या एक निश्चित तरीके से दिखने के बारे में नहीं है। शारीरिक स्वास्थ्य का मतलब है मज़बूत बनना, एनर्जी होना और आत्मविश्वास महसूस करना।
फिजिकल एक्टिविटी का मतलब है- वो एक्सरसाइज या मूवमेंट करना, जो तुम्हारे शरीर के साथ तुम्हें भी अच्छा लगे। हो सकता है पहली बार तुम्हे कसरत करना अच्छा न लगे; खासकर अगर तुम भी अर्जुन की तरह हो और अपने वज़न को लेकर चुनौतियों का सामना कर चुके हो। लेकिन छोटे-छोटे कदम – जैसे कि आस-पड़ोस में टहलना, अपनी पसंदीदा गानों पर नाचना या कोई नया खेल आज़माना – धीरे धीरे बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
और यहां हमारी दिशा की ओर से एक ख़ास टिप है: जब तुम अपने शारीरिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता यानी कि प्रायोरिटी देते हो, तो तुम सिर्फ़ अपने शरीर का ही ख़्याल नहीं रखते बल्कि तुम अपने मूड को भी बेहतर बनाते हो और अपने दिमाग को तेज़ करते हो। एक्सरसाइज करने से एंडोर्फिन नामक फ़ील-गुड हॉरमोन रिलीज़ होते हैं, जो तनाव और चिंता को दूर भगाने में मदद कर सकते हैं। साथ ही, एक्टिव रहने से तुम्हारा फ़ोकस एंड कंसंट्रेशन भी बेहतर होता है, जिससे स्कूल के उन मुश्किल असाइनमेंट को पूरा करना भी आसान हो सकता है। इसलिए तो स्कूल में हर सप्ताह एक फिजिकल एजुकेशन की एक क्लास होती है!
मानसिक स्वास्थ्य: प्रियांशी का दबाव
मानसिक स्वास्थ्य का मतलब होता है – अपने दिमाग को फिट रखना! कैसे? दिमाग को कसरत करा के – अपने आप को नई चीजों के साथ चुनौती देकर, पॉजिटिव रहकर और तनाव से निपटने के तरीके खोजकर। जैसे कभी किसी मुश्किल पहेली को सुलझाना या अपनी डायरी में अपने मन के ख्याल लिखना। बस इसे ही कहते हैं अपने दिमाग का ख्याल रखना!
15 साल की प्रियांशी से मिलो, जो पढ़ाई में तेज है लेकिन हमेशा पढाई को लेकर दबाव महसूस करती है। उसके मम्मी पापा उसे अपनी क्लास में सबसे फर्स्ट आने के लिए कहते रहते हैं, लेकिन यह सारा स्ट्रेस प्रियांशी को तनावग्रस्त और दुखी महसूस कराता है। वो अक्सर बहुत घबरा जाती है और कई बार तो उसकी हालत ऐसी हो जाती है की उसको चक्कर आने लगते है, उलटी आने लगती है। कई बार परीक्षा देते देते ब्लेंक हो जाती है या फिर कभी उसकी भूख मर जाती है और वो बीमार भी पड़ जाती है। इस वजह से वो कई दिन स्कूल भी नही जा पाती।
हर समय परफेक्ट बनने की कोशिश करना थका देने वाला होता है और उसका मानसिक स्वास्थ्य अब उसके शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है।
भले ही प्रियांशी बहुत होशियार है, लेकिन उसके मां-पापा का लगातार दबाव उसके ऊपर मंडरा रहे काले बादल की तरह है। हमेशा उम्मीदों पर खरा उतरने के बारे में चिंता करने से उसके लिए अपनी सफलताओं का आनंद लेना मुश्किल हो गया है।
लेकिन अच्छी खबर यह है कि प्रियांशी अकेले नहीं है। ऐसा बहुत से स्टूडेंट्स के साथ होता है – वो किसी भरोसेमंद व्यक्ति से बात करके अपना मन हल्का कर सकती है और बता सकती है की उसे कैसा महसूस होता है। वो अपने तनाव को कम करने के तरीके खोजकर खुद को खुश रख सकती है। इसका मतलब है कि सही मदद के साथ वो सीख सकती है कि सफलता केवल ग्रेड्स के बारे में नहीं है। यह अपने बारे में अच्छा महसूस करने और जीवन का आनंद लेने के बारे में भी है।
भावनात्मक स्वास्थ्य: निर्वाण के मन की बात
आओ बात करें भावनात्मक स्वास्थ्य यानी कि इमोशनल हेल्थ की। हां, यह मानसिक स्वास्थ्य जैसा ही है, लेकिन यह भावनाओं पर ज़्यादा फोकस करता है। यह भावनाओं को समझने और उन्हें मैनेज करने के बारे में है। सभी भावनाओं को महसूस करना ठीक है लेकिन यह जानना ज़रूरी है कि कुछ भावनाएं जैसे की गुस्सा या दुःख – उनसे स्वस्थ तरीकों से कैसे निपटा जाए। जैसे की अगर तुम उदास महसूस कर रहे हो, तो किसी फ्रेंड से बात करना या कुछ ऐसा करना जो तुम्हें पसंद हो।
राजस्थान का रहने वाला 14 साल का निर्वाण मुश्किल समय से गुज़र रहा है। उसने हाल ही में अपनी दादी को खो दिया है, जो उसकी सबसे अच्छी फ्रेंड की तरह थीं। निर्वाण और उसकी दादी बहुत करीब थे। वो अक्सर उनके कमरे में रहता था और अब जब वो चली गई हैं, तो वो बहुत अकेला महसूस करता है। वो अपनी उदासी से उबार नहीं पा रहा है और उसे अपने स्कूल के काम में फोकस करने में मुश्किल हो रही है।
उसके मम्मी-पापा उसके बारे में चिंतित है लेकिन निर्वाण अपनी भावनाओं को अपने तक ही सीमित रखता है। निर्वाण के दुख और भावनात्मक उथल-पुथल ने उसके जीवन के अन्य क्षेत्रों को प्रभावित करना शुरू कर दिया । उसके एग्जमा में नंबर कम होने लगे है, और उसके मम्मी पापा उसके व्यवहार में बदलाव को नोटिस कर रहे हैं। बहुत बार पूछने के बावजूद वो अपनी भावनाओं को दबाए रखता है। अपने मन की बात को खुद तक रखना चाहता है और उसे खामोशी में आराम मिलता है।
अपनी भावनाओं से निपटने के लिए निर्वाण ने एक बढ़िया चीज़ की ओर रुख किया – कविता लिखना! यह अपने अंदर की सभी भावनाओं को बाहर निकालने का अच्छा तरीका है। उसे खामोश रहने और कविता लिखने में शांति मिलती है।
निर्वाण की कहानी दुःख को झेलने और भावनात्मक रूप से अच्छा महसूस करने पर रौशनी डालती है । निर्वाण को अभी के लिए खामोशी और कविता में शांति मिल गयी है लेकिन उसके लिए अपनी भावनाओं से निपटने के और स्वस्थ तरीके खोजना और अपने आस-पास के लोगों का सपोर्ट लेना ज़रूरी है। खुलकरअपनी भावनाओं को किसी के साथ शेयर करके वो इस दुःख से उबर सकता है।
सोशल वेल-बीइंग: अक्षिता की कहानी
आओ अब बात करते है है सोशल वेल-बीइंग यानि सामाजिक खुशहाली के बारे में। सामाजिक खुशहाली अच्छे रिश्तों से आती हैं। दोस्त, परिवार, सहपाठी – ये सभी तुम्हारी लाइफ में अहम भूमिका निभाते हैं। यह ऐसे लोगों के बारे में हैं, जिन पर तुम भरोसा कर सकते हो और जो तुम्हें अच्छा महसूस कराते हैं।
दिल्ली की रहने वाली 15 साल की अक्षिता डिजिटल दूनिया से दूर लाइफ को इंज्वॉय कर रही है, जबकि उसके फ्रेंड्स व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बिजी हैं। अक्षिता खुद को स्मार्टफोन या किसी भी सोशल मीडिया अकाउंट पर एक्टिव नहीं रखती है। यह हैशटैग और इमोजी की दूनिया में थोड़ा अजीब लग सकता है!
लेकिन इस डिजिटल डिस्कनेक्ट के बीच अक्षिता ने एक जरूरी सबक सीखा । उसे मालूम है कि सच्चे रिलेशन लाइक या कमेंट से नहीं, बल्कि फ्रेंड्स और फैमिली के साथ बातचीत से होते हैं।
एक दूसरे से वर्चुअली जुड़ी इस दुनिया में अक्षिता को स्क्रीन से दूर असल ज़िन्दगी के अनुभवों को अपनाने के महत्व का पता है।
आध्यात्मिक खुशहाली: गुरुद्वारे में करण का तबला
आखिर में आध्यात्मिक खुशहाली या स्पिरिचुअल वेल-बीइंग के बारे में बात करते हैं। कंफ्यूसिंग लगा? टेंशन मत लो , स्पिरिचुअल वेल बीइंग आसान है! यह सिर्फ़ धर्म के बारे में नहीं है। यह ज़िन्दगी में खुद के मकसद को खोजने के बारे में है। स्पिरिचुअल वेल-बीइंग प्रकृति से जुड़ने से, कला के माध्यम से या या दूसरों की मदद करने से पाया जा सकता है – ऐसा कोई भी चीज़े जो जो भी तुम्हें और दूसरों को खुशी देता हो।
16 वर्षीय करण से मिलो, जो अपने पड़ोस के गुरुद्वारे में तबला बजाकर बहुत खुशी महसूस करता है। यह सिर्फ़ संगीत के बारे में नहीं है बल्कि यह करण के लिए अपने कम्युनिटी के लोगों से जुड़ने, अपने आप को व्यक्त करने और शांति महसूस करने का एक तरीका है।
करण की कहानी दिखाती है कि आध्यात्मिक अभ्यास हमारी आत्मा को मजबूत कर सकते हैं और हमें खुद को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकते हैं। जब हम ऐसी एक्टिविटी करते हैं जो हमें अंदर से अच्छी लगती हैं, तो हम अपने जीवन में स्थिरता और विकास की नींव बना सकते हैं।
समझे क्या?
इन टीनएजर्स की कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि खुशहाल होने के कई पहलु होते है। यह एक पहेली को पूरा करने जैसा है – पूरी तस्वीर को बनाने के लिए तुम्हें सभी टुकड़ों की ज़रूरत होती है। यानी शरीर की देखभाल के साथ दिमाग, भावनाओं, रिश्तो और आत्मा की भी देखभाल करनी भी ज़रूरी है।
इसके बारे में इस तरह से सोचो: स्वस्थ होने का मतलब है- अंदर और बाहर से अच्छा महसूस करना। तुम जो कुछ भी करते हो, उसमें संतुलन (बैलेंस) पाना और जो तुम्हें सच में खुश करता है, उससे जुड़ना। चाहे वो तुम्हारा पसंदीदा खेल खेलना हो या डांस करना हो, फ्रेंड्स के साथ चैट करना हो या नेचर के साथ शांति महसूस करना हो, अपने हर पहलु का ख्याल रखो और देखो कि कैसे तुम्हारी टीनएज लाइफ शानदार बनती हैं!