‘मुझे अच्छा नहीं लग रहा है’
रिद्धिमा (13), एक खुशनुमा, मस्त मौला लड़की हुआ करती थी जो सहपाठियों की बुलिंग का शिकार हो गई। इसने उसके आत्मविश्वास को कम कर दिया। वह इससे तब तक दुखी रही जब तक कि उसने इस स्थिति को अपने हाथों में लेने का फैसला नहीं किया।
ऊपर मौसम कैसा हैं?
मुझे नहीं पता कि ध्रुव ने मुझे ही क्यों चुना था लेकिन मुझे अच्छी तरह से याद है कि उसकी और उसके दोस्तों की दादागिरी कब शुरू हुई थी। यह 7 वीं कक्षा का दूसरा सप्ताह था और टीचर को क्लास में आने में देर हो गई। मैं अपने लॉकर की तरफ़ जाने के लिए उठी और जैसे ही मैं उसकी मेज के पास पहुंची , उसने मेरी ओर देखा और कहा, ‘यार, तुम्हारी हाइट तो फुल राक्षस साइज हैं! तुम नॉर्मल नहीं हो यार!’ मैंने उसे और उसके बगल में दाँत निपोरते हुए लड़के को भद्दी नज़र से देखा लेकिन चुप रही क्योंकि टीचर अंदर आ गए थे।
लेकिन यह बात पूरे दिन मेरे दिमाग में चलती रही। मैं वैसे ही हमेशा अपनी ऊंचाई के बारे में थोड़ी सचेत थी। जहाँ तक मुझे याद है मैं हमेशा सबसे लंबी बच्ची हुआ करती थी और जब आप एक लड़की होते हैं तो यह स्थिति बहुत मुश्किल होती है। बाकी सभी लड़कियाँ इतनी कोमल और छोटी सी थीं। और यहाँ मैं केवल तेरह साल की थी और पाँच फुट पाँच इंच की हो चुकी थी। अपनी क्लास की सबसे लंबी स्टूडेंट और मैं इसे बदलने के लिए कुछ भी नहीं कर सकती थी!
हो सकता है कि मेरी चुप्पी से उन्हें और बढ़ावा मिल गया क्योंकि उनके कमेन्ट और भी भयानक होते जा रहे थे। ऐसी फब्तियाँ हर दिन मुझ पर उछाली जातीं –
‘वहाँ ऊपर मौसम कैसा हैं?’
‘खंबा!’
‘ताड़ का पेड़!’
‘यह एक आदमी की तरह लगती है!’
दिन पर दिन मुश्किल
मेरे आस पास से पर्चियाँ गुज़र रहीं थीं। उनमे अक़सर चित्र बने हुए होते। एक में मुझे एक लड़के को अपनी गोद में उठाये हुए दिखाया था। उस लड़के को मेरे बॉयफ्रेंड जैसे दिखाया और कैप्शन में लिखा था – ‘मस्त लाइफ़: जब आपकी गर्लफ्रेंडआपकी मुफ़्त ट्रांसपोर्ट भी हो!’ फिर सब लड़के मिल कर मेरा मज़ाक उड़ाते। मेरे बेस्ट फ्रेंड रमणीक और जिया ने उन्हें मना करने की कोशिश भी की लेकिन उनकी किसी ने सुनी ही नहीं।
मैं अपने ही शरीर से शर्मिंदा होने लगी थी। मेरे दिमाग में उसको मुंह तोड़ जबाव देने के कई प्लान थे लेकिन जैसे ही मैं उसे देखती डर से मेरा गला सूख जाता। रोज़ स्कूल जाना और उसकी यह सब यातनाएं झेलना मेरे लिए दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा था।। लेकिन, मैं अपने माता-पिता को परेशान नहीं करना चाहती थी क्योंकि वे स्कूल में शिकायत करते और मेरा जीवन और नर्क हो जाता।
एक दिन मैंने अपना लॉकर खोला तो वहाँ पोस्टर लगा हुआ था , उस पर दो विशाल इमारतों के साये में दो लोग खड़े थे, एक मैं और एक गॉडजिला, एक दूसरे को चूमते हुए, तस्वीर का शीर्षक था – जब प्रकृति के दो शैतान प्यार में पड़ जाते हैं और गॉडजिला मेरी शर्ट को अपने नंगे पंजों के साथ फाड़ रहा था और मेरे सीने के हिस्से दिखाई दे रहे थे। उसे देखते ही मुझे एकदम से चक्कर आया।
जिया मुझे संभालने के लिए बढ़ी, तब मैंने कहा, ‘मुझे अच्छा नहीं लग रहा है।’ उसने पोस्टर लिया, उसे रोल किया और मुझे काउंसलर के कमरे में ले गई।
डर के आगे जीत
सोनिया मैम (स्कूल काउंसलर) को यह सब बताना मेरे लिए आसान नहीं था, क्योंकि मैं इस बात को लेकर चिंतित थी कि अगर मैंने ऐसा किया तो उसका अंजाम क्या होगा। इसमें समय लगा, लेकिन आखिरकार वह सब समझ गई और उन्होंने जो कहा वह मुझे समझ में आने लगा। ‘तुम मेरे पास मदद मांगने आई हो यह एक साहसी कदम है। अब तुम्हें अपने लिए थोड़ा दयालु होना होगा, समझना होगा कि तुम कितनी अद्भुत इंसान हो और उसे स्वीकार भी करना होगा। अक्सर बुली करने वाली, धौंस दिखाने वाले लोग आत्मविश्वास देख सहम जाते हैं और अगर आप जरा भी डरते हैं, तो वे जीत जाते हैं।’
हमारी कक्षा के लिए एक एंटी-बुलइंग सत्र आयोजित किया गया था और यह घोषणा की गई थी कि बुलइंग को बहुत गंभीरता से लिया जाता है और ऐसी सूचना मिलने पर स्टूडेंट्स को स्कूल से निकाला भी जा सकता है। ध्रुव ने मुझ पर एक तीखी नज़र डाली लेकिन चुप रहा। ध्रुव और कुछ लड़कों को सोनिया मैडम के ऑफिस भेजा गया। उसके बाद से मेरे लिए बहुत दोस्ताना या सहज तो नहीं हुआ लेकिन उसकी वे हरकतें रुक गईं।
मैं अब अच्छा महसूस कर रही थी और अपने अंदर एक नया आत्मविश्वास भी। अब अगर कोई मुझसे पूछता कि ‘ऊपर मौसम कैसा है?’. मैं तुरंत जवाब देती ‘बढ़िया! नीचे भी ठीक है न?’
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