‘मैं बहुत डिस्टर्बड थी’
धूम्रपान एक लत है और इसे छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है। इस आदत से छुटकारा पाने में आपकी मदद करने के लिए टीनबुक के पास टिप्स हैं। पता लगाओ कैसे।
‘कोई नुकसान नहीं होगा’
मैं कक्षा नौ में थी, जब मेरे दोस्तों ने स्कूल के बाद एक दिन मुझे कॉर्नर किया और उनके साथ चलने को कहा। पुलकित ने कहा, ‘हम कुछ बहुत कूल करने जा रहे हैं , तुम भी हमारे साथ चलो। ‘जब मैं करीब गई, मैंने देखा कि आधिराज और समैरा एक साथ बैठे हैं और धूम्रपान कर रहे हैं। मुझे अजीब और गिल्टी महसूस हुआ। लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा।
उन्होंने मुझसे भी पूछा और मुझे यकीन दिलाया कि सिगरेट पीने से कोई नुकसान नहीं होता। मैं कूल दिखना चाहती थी और इस ग्रुप का हिस्सा बनना भी। इसलिए मैं मान गई। मैंने एक कश लिया और धुआँ बाहर छोड़ा। और वो सभी मेरे लिए ताली बजाने लगे।
यह स्कूल के बाद हमारा रोज़ का काम बन गया । मुझे मुंह से निकलने वाले स्मोक कर्ल्स बहुत पसंद थे और मैं भी उसे पूरे परफेक्शन के साथ करना चाहती थी। ख़ुद को इस कूल समूह का हिस्सा साबित करने की चाह में मैंने धूम्रपान करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे इसे पसंद करना भी। मुझे खासकर सिगरेट की गंध बहुत पसंद थी।
कुछ दिनों के बाद, धूम्रपान एक आदत बन गई। इस बुरी आदत का का एहसास मुझे तब हुआ जब मैं उसके बिना एक दिन भी नहीं निकाल पा रही थी।
सेल्फ-रियलाइज़ेशन
धूम्रपान की ना बुझने वाली तलब ने मुझे बहुत परेशान कर दिया था। मेरे ग्रेड गिरने लगे। मेरी तबीयत बिगड़ने लगी। मैं खुद को एक गहरे कुएं के अंदर महसूस कर रही थी। इस बारें में अब कुछ करना ज़रूरी हो गया था।
सबसे पहले अपनी बड़ी बहन को सब कुछ बताया। इस समय मे उसने मेरा बहुत साथ दिया।
सेल्फ-रियलाइज़ेशन की प्रक्रिया महत्वपूर्ण और ज़रूरी है, लेकिन चीजें आसान नहीं होती । मुझे यह समझने में काफी समय लगा कि धूम्रपान मुझे, मेरे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बर्बाद कर रहा है।
दीदी की मदद से मैंने अपने मम्मी पापा से बात की और जबकि मुझे उम्मीद नहीं थी उन्होंने मुझे समझा । माता-पिता और दीदी की मदद से, मैं धीरे-धीरे उस आदत को छोड़ सकी जो मेरे जीवन पर हावी होने लगी थी।
कूल नहीं बन पाई
लेकिन फिर मेरे दोस्त बदल गए। उन्होंने मुझे अनदेखा करना शुरू कर दिया, और जब उनसे इसका कारण पूछा गया, तो उन्होंने कहा मैं अब कूल नहीं रह गई थी। कारण – मैंने धूम्रपान बंद कर दिया था। जब भी मैं आसपास होती, वे मुझे सिगरेट ऑफर करते और मैं मना कर देती थी। धीरे-धीरे उन्होंने मुझसे पूछना बंद कर दिया और मुझे से दूर रहने लगे।
सच कहूँ तो मेरे लिए हार मान जाना बहुत आसान होता। धूम्रपान छोड़ना कोई आसान काम नहीं है। इस आदत को पूरी तरह से खत्म करने में मुझे 1.5 साल का समय लगा। तब मुझे एहसास हुआ कि वे वास्तव में मेरे दोस्त नहीं हैं। तब मैं सचेत रूप से उनसे दूर रहने लगी। मुझे एहसास हुआ कि जो मुझे कूल लग रहा था वो असल मे मुझे ही नुकसान पहुंचा रहा था।
मुझे एहसास हुआ क़ि स्मोकिंग के खिलाफ वाले सारे विज्ञापन सही थे। मैं सिगरेट पर डेपेंडेंट हो गयी थी। इसने मुझे बीमार कर दिया और जो चीज़ मुझे कूल लग रही थी उसने मुझसे वो सारी चीज़े दूर करदी जो मुझे सच मे पसंद थी।
दोस्त कौन है?
लेकिन मुझे एक बात की ख़ुशी है । कहते हैं ना कि हरेक निराशा में भी एक उम्मीद की किरण होती है।इस भयानक इंसिडेंट ने मेरी आँखे खोल दी और मुझे एहसास कराया कि क्या कूल है और क्या नहीं। कौन असली दोस्त है और कौन नहीं? और अब मुझे पता है की मेरा असली खज़ाना मेरा परिवार है। हम कभी-कभी अपने परिवार की कीमत पर, अपने दोस्तों को अधिक महत्व देते हैं। लेकिन मेरा परिवार था जो मेरे सबसे अच्छे दोस्त साबित हुए!
क्या आप कभी दीक्षा की स्थिति में आए हैं? आपने कैसा महसूस किया? क्या आपने इसके बारे में कुछ किया? नीचे कमेंट बॉक्स में हमारे साथ साझा करें। याद रखें, कोई भी व्यक्तिगत जानकारी कमेंट बॉक्स में न डालें।