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कैंटीन में सुना

मैं वो पोस्ट डिलीट करना चाहती थी…

ब्रेक टाइम में चारु और अद्विका कैंटीन में साथ बैठी हैं। लेकिन चारु कुछ उदास सी लग रही है। क्या अद्विका से बात करने से उसका मूड ठीक हो पाएगा? जानिए इस कैंटीन टॉक में!

अद्विका: अरे, जो फोटो तुमने कल डाली थी, उसमें तुम बहुत अच्छी लग रही थीं! ड्रेस भी बहुत प्यारी थी।

चारु: थैंक्यू… लेकिन सच बताऊँ, मैं शायद आज घर जाकर वो फोटो डिलीट कर दूँ।

अद्विका: क्यों? क्या हुआ?

चारु: जब मैं शीशे में देखती हूँ ना, तो मुझे… मुझे खुद को देखकर अच्छा नहीं लगता। ऐसा लगता है कि मेरे आसपास सब लोग हमेशा परफेक्ट दिखते हैं। और मैं चाहे कुछ भी कर लूँ, खुद कभी भी अच्छा महसूस नहीं कर पाती। मैं जैसी हूँ, वैसी खुद को ठीक क्यों नहीं लग सकती? मैं ढीले-ढाले कपड़े पहनती हूँ ताकि कोई मुझे नोटिस न करे, लेकिन फिर भी ऐसा लगता है कि मैं अच्छी नहीं लग रही। जो भी करती हूँ, वो काफी नहीं होता।

अद्विका: अरे पर तुम ऐसा क्यों सोचती हो?

चारु: कुछ दिन पहले मैंने एक ड्रेस पहनकर फोटो डाली थी… थोड़ी बोल्ड थी मेरे लिए, लेकिन पहली बार ऐसा लगा कि… हां, मैं भी अच्छी लग सकती हूं।

अद्विका: और फिर?

चारु: फिर कमेंट्स पढ़े… किसी ने लिखा “फ्लैट लग रही हो”, किसी ने “लड़कों जैसी लग रही हो”। बस… मूड ही खराब हो गया। समझ नहीं आता लोगों को दूसरों की खुशी से इतनी दिक्कत क्यों होती है।

अद्विका: यार, ये बहुत ही घटिया है। और दुख की बात ये है कि हम सबने कभी न कभी ये फेस किया है। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है कि तुझे ये सब सुनना पड़ा।

चारु: ये सिर्फ उस एक फोटो की बात नहीं है अद्वि… ये तो मेरी लाइफ में हमेशा से होता आया है। लोग हमेशा कुछ न कुछ बोलते रहते हैं, जैसे मज़ाक में ही सही — “इतना कम क्यों खाती हो?”, “हवा में उड़ जाओगी एक दिन”… पर मुझे बहुत हर्ट करता है ये सब। धीरे-धीरे लगता है जैसे मेरे साथ कुछ गड़बड़ है।

अद्विका: हां यार, लोग सोचते हैं कि वो बस मज़ाक कर रहे हैं, पर समझते नहीं कि उनका मज़ाक किसी को अंदर तक हिला सकता है। जो लाइन वो हंस के बोलते हैं, वही किसी के लिए डर, शर्म… या खुद से नफरत बन सकती है।

चारु: और पता है, सबसे ज़्यादा बुरा तब लगता है जब ये बातें सिर्फ अजनबी नहीं, अपने भी बोलते हैं। एक बार मेरी मौसी ने हँसते हुए बोल दिया था – “असली औरतों का शरीर ऐसा नहीं होता।” मतलब क्या? मैं नकली हूँ?

अद्विका: यार… ये तो बहुत ही हर्ट करने वाली बात है। और ये सोचो, वो हँसी में कह गईं… पर तुम्हें कितना बुरा लगा होगा। लोग बोलने से पहले सोचते क्यों नहीं?

चारु: हाँ… और जब बार-बार ऐसी बातें सुनो ना, तो एक वक्त बाद लगने लगता है कि शायद मैं ही ग़लत हूँ। खुद से बहस करनी पड़ती है हर रोज़।

अद्विका: मैं समझ सकती हूँ। लेकिन सच ये है कि तुझे कुछ भी छुपाने या बदलने की ज़रूरत नहीं है। यही सब चीज़ें तो तुझे तू बनाती हैं। और वैसे भी यह ‘परफेक्ट’ का मतलब किसने तय किया है? मेरे लिए तो परफेक्ट वही होता है जो जैसे है, वैसे ही अपने आप में खुश रहता है। कोई फिल्टर या बॉडी टाइप उस रियलनेस से बेहतर नहीं हो सकता।

चारु: सही कह रही हो… आसान नहीं है। ये बातें मैं बचपन से सुनती आई हूँ। लेकिन आज तुम्हारे सामने ऐसे खुलकर बोल पाई – शायद ये ही मेरा पहला सही कदम है।

अद्विका: और अब अगला कदम ये होना चाहिए कि तुम खुद की सबसे बड़ी चीयरलीडर बनो। जब दुनिया नीचे गिराने की कोशिश करे, तो तुम्हें खुद को उठाना आना चाहिए। हर दिन एक छोटी-सी बात लिखो जो तुम्हें अपने बारे में अच्छी लगती हो – बस एक! धीरे-धीरे, तुम्हारा कॉन्फिडेंस खुद के अंदर से निकलेगा, न कि दूसरों के कमेंट्स से।

चारु: ठीक है… कोशिश करूँगी। लेकिन सच बताऊँ, बुरी बातें सुनकर उन पर यकीन करना इतना आसान होता है।

अद्विका: पता है क्यों? क्योंकि दुनिया हमें बार-बार ये बताती है कि हमारी वैल्यू हमारे दिखने से तय होती है। पर रुक कर सोचो – लोग क्या याद रखते हैं? ये कि तुमने उन्हें समझा, उन्हें हँसाया, साथ दिया – न कि तुम्हारी स्किन पर कोई दाग था या तुम किसी मॉडल जैसी दिख रही थीं या नहीं।

चारु: तुम्हारी बात सुनकर लग रहा है… शायद मैं जैसी हूँ, वैसी ही काफी हूँ। बस, ये खुद को बार-बार याद दिलाना पड़ेगा।

अद्विका: और जब तुम भूल जाओ, तो मैं याद दिला दूँगी! ठीक है? 

चारु: थैंक्यू, अद्वि। तुमसे बात करके सच में थोड़ा हल्का महसूस हो रहा है। शायद अब मैं वो पोस्ट डिलीट ना करूँ।

अद्विका: बस यही तो चाहिए था! जैसी हो, वैसी ही रहो – दुनिया को असली और प्योर लोगों की बहुत ज़रूरत है।

 क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया है। अपना एक्सपीरियंस नीचे कमेंट बॉक्स में शेयर करें। याद रखे कभी भी कोई पर्सनल इनफार्मेशन कमेंट बॉक्स में ना डालें। 

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