header image

साइंस लैब

मैं स्क्रीन से चिपका क्यों रहता हूँ?

अगर तुम ये पढ़ रहे हो, तो शायद तुमने भी अपने आप से ये सवाल पूछा होगा –“मैं स्क्रीन से इतना चिपका क्यों रहता हूँ?”

चिंता मत करो, स्क्रीन के साथ बहुत समय बिताना आजकल बहुत आम बात है – और इसे समझा भी जा सकता है और ठीक भी किया जा सकता है। इस लेख में हम इसी बात को थोड़ा साइंटिफिक तरीके से समझेंगे – लेकिन डरने की बात नहीं है, सब कुछ आसान भाषा में समझाया गया है!

हो सकता है तुमने इस बारे में पचास आर्टिकल्स या सेल्फ-हेल्प किताबें पढ़ी हों। तीन सौ मोटिवेशनल कोट्स देखे हों या कोई साइंस वाले आर्टिकल्स स्क्रॉल किए हों।
सच क्या है? इस आर्टिकल में कुछ बातें बार-बार सुनी हुई लग सकती हैं, लेकिन वो सच में काम की हैं। इनमें से बहुत सी चीज़ें साइंस और रिसर्च से साबित हुई हैं। और बाकी वो हैं जो मुझे खुद से मदद मिली।

कुछ साल पहले जब कोविड हुआ था और सब घर में बंद थे, तब मेरा स्क्रीन टाइम 7 घंटे से भी ज़्यादा हो गया था। छुट्टी के दिन तो मैं और मेरा लैपटॉप लगभग एक ही इंसान बन जाते थे! स्कूल से आने के बाद, मैं सीधा वीडियो गेम खेलने बैठ जाता था। फिर यूट्यूब, फिर इंस्टाग्राम – और अक्सर ये सब रात 11 बजे तक चलता रहता था।

अब जब मैं पीछे देखता हूँ तो थोड़ा अजीब लगता है। पर अब चीज़ें थोड़ी बेहतर हैं। मैं अभी भी कभी-कभी बहुत ज़्यादा स्क्रॉल करता हूँ, पर मैं पहले से ज़्यादा जागरूक हूँ। और इस बदलाव में साइंस और कुछ अच्छी आदतों ने मेरी मदद की।

ये सब डोपामिन का खेल है!

डोपामिन एक न्यूरो-केमिकल होता है जो हमें अच्छा महसूस कराता है। जब भी हमें कोई नोटिफिकेशन मिलता है, गेम में हम जीतते हैं या कोई हमारी फोटो को लाइक करता है – हमारा दिमाग डोपामिन छोड़ता है और हमें अच्छा लगता है।

और हाँ, ये नशे जैसा होता है!
डोपामिन की वजह से हमें बार-बार वही चीज़ करनी होती है जिससे हमें अच्छा लगा था।

डोपामिन की ये “किक” तब ज़्यादा मिलती है जब हम बिना मेहनत वाली चीज़ें करते हैं – जैसे वीडियो देखना या गेम खेलना। लेकिन जब कोई काम करने में मेहनत लगती है – जैसे स्कूल का असाइनमेंट करना – तब दिमाग को तुरंत वो खुशी नहीं मिलती।

ऐप्स और गेम्स ऐसा ही चाहते हैं

ये जो हम गेम्स और सोशल मीडिया ऐप्स यूज़ करते हैं, उन्हें ऐसे ही बनाया गया है कि हम ज़्यादा से ज़्यादा वक्त उन पर बिताएँ।

उदाहरण के लिए, Fortnite जैसे गेम – हर बार कोई नया अपडेट आता है, बैटल पास आता है, ताकि हम खेलते रहें और पैसे भी खर्च करें। इंस्टाग्राम जैसे ऐप्स में एक के बाद एक वीडियो चलते रहते हैं। यूट्यूब पर ऑटोप्ले से वीडियो अपने आप चलने लगते हैं।

इन सबका मकसद एक ही है – हमें ऐप पर चिपकाए रखना।

हमारा दिमाग थोड़ा आलसी होता है

हमारा दिमाग हमेशा आसान रास्ता ढूँढता है। स्कूल का काम करना मुश्किल लगता है, लेकिन फोन चलाना आसान है। इसलिए जब भी हमें थकान होती है या बोरियत लगती है, हमारा दिमाग कहता है – “फोन देख लो”।

लेकिन जब हम कोई मुश्किल काम करते हैं – जैसे एक चैप्टर पूरा करना या कोई होमवर्क अच्छे से करना – तो हमें अंदर से बहुत खुशी मिलती है।
इसी को कहते हैं फ्लो स्टेट– जब हम पूरी तरह से किसी काम में डूब जाते हैं और समय का पता ही नहीं चलता।

अब सवाल ये है – इससे निकलें कैसे?

1. सोच बदलो – खुद को बदलो

सिर्फ ये सोचना कि “मुझे स्क्रीन कम देखनी है” काफी नहीं है। हमें ये सोचना होगा – “मैं ऐसा इंसान बनना चाहता हूँ जो अपने समय का सही इस्तेमाल करता है।”

इसका मतलब है – अपनी सोच बदलो। एक किताब है Atomic Habits, उसमें यही कहा गया है – अगर सच में बदलाव चाहिए, तो खुद को पहले सोच में बदलो।

2. कोई खेल पकड़ लो

सभी कहते हैं – “एक्सरसाइज़ करो”, लेकिन मेरा कहना है – “कोई खेल खेलो।”

मुझे शतरंज और क्रिकेट पसंद हैं। तुम्हें जो पसंद हो, वो खेलो। रोज़ थोड़ी देर खेलना शुरू करो। जब तुम अपने शरीर को हिला-डुला रहे होते हो, तो दिमाग को भी आराम मिलता है।

3. धीरे-धीरे शुरुआत करो

एक ही दिन में सब कुछ बदलना ज़रूरी नहीं है। छोटे-छोटे स्टेप्स लो।

मैंने माइनक्राफ्ट छोड़कर शतरंज खेलना शुरू किया। पहले दिन सिर्फ एक गेम। फिर दो। फिर आदत बन गई।

अपने एक-एक घंटे की बर्बादी को थोड़ा-थोड़ा करके कम करो।

4. दिन का प्लान बनाओ

मेरे पापा हमेशा कहते हैं – “अपने दिन की प्लानिंग करो।”

सुबह उठते ही एक डायरी में लिखो – आज क्या करना है। जैसे – स्कूल से आकर क्या करोगे, खेलने कब जाओगे, होमवर्क कब करोगे।

जब दिन का टाइमटेबल होता है, तो मन कम भटकता है। अपने दिन का पूरा टाइमटेबल बनाओ ताकि तुम्हारे पास टाइम न बचे और तुम स्क्रीन पर न भटको।

ऐसी आदतें शुरू करना मुश्किल होता है, इसलिए मैं फिर से एटॉमिक हैबिट्स किताब पढ़ने की सलाह दूंगा, जिसमें ये बताया गया है कि आदतें कैसे बनती हैं और कैसे उन्हें बनाए रखा जाता है।

5. डिसिप्लिन सबसे ज़रूरी है

मोटिवेशन कुछ समय के लिए काम करता है। लेकिन हर दिन कुछ करने के लिए डिसिप्लिन चाहिए।

डिसिप्लिन का मतलब – भले ही मन ना हो, फिर भी करना। थोड़ी-थोड़ी मेहनत से ही बड़ी चीज़ें बनती हैं।

याद रखो, हर चीज़ ठीक होती है अगर लिमिट में हो। तुम रोज़ एक घंटा स्क्रीन पर अपना पसंदीदा काम करने के लिए रख सकते हो, जैसे कोई वीडियो देखना या गेम खेलना।
लेकिन अच्छी डिजिटल आदतें रखना और टाइम का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है।

मैंने अब तक जो पढ़ा है और अब भी सीख रहा हूँ (बहुत कुछ!), उससे एक बात समझ आई है — आगे बढ़ने के लिए तुम्हारा माइंडसेट, डिसिप्लिन और आदतें बहुत काम आती हैं।
लेकिन ये सब तुम खुद धीरे-धीरे समझते हो।


क्या आपके पास साइंस लैब के लिए कोई प्रश्न हैं? उन्हें नीचे टिप्पणी बॉक्स में पोस्ट करें। हम अपने आगामी लेखों में उन्हें जवाब देंगे। कृपया कोई पर्सनल जानकारी न डालें। 

एक टिप्पणी छोड़ें

आपकी ईमेल आईडी प्रकाशित नहीं की जाएगी। अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *

टैग

#AskDisha #canteentalk exam pressure safety stress अच्छे दोस्त चुन आकर्षण एंग्जायटी कमिंग आउट किशोर लड़कों का शरीर किशोरावस्था कैंटीन टॉक क्रश गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड बनाने का दबाव जीवन हमेशा के लिए बदलने वाल टीनएज टीनएज लव टीनएज वाला प्यार ट्रांसजेंडर डाइवोर डिप्रेशन तनाव दिशा से पूछें दोस्ती दोस्ती की प्रोब्लेम परीक पहली किस का दबाव #एक्सपर्टसेपूछें पीरियड्स प्यार प्यार में धोखा प्रेशर बुलइंग मम्मी-पापा अलग हो रहे ह मम्मी-पापा का डाइवोर मेरे बॉयफ्रेंड ने मुझे चीट किआ यौन उत्पीड़न यौवन रिलेशनशिप लड़कियों को अकेले बाहर जाने की अनुमति क्यों नहीं दी जाती ह लड़कों और लड़कियों के बीच अलग-अलग व्यवहार किया जाता ह लड़कों के साथ अलग-अलग व्यवहार क्यों किया जाता ह लड़कों को हर तरह से मजा क्यों करना चाहिए सभी दोस्तों की गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड सहमति ख़राब मूड