किशोर देर तक क्यों सोते हैं?
दिन भर ऊँघना और रात भर जागना
चाहे आप कितने ही चमकीले रंगों से अपनी डायरी में लिखकर सख़्त टाइम टेबल बना लें कि आप रात में 11 बजे सो कर सुबह 6 बजे उठेंगे, टीनएजर्स इस नियम को हमेशा तोड़ ही देते हैं! दिन भर सुस्ती से भरे और रात भर जगे जगे! नींद ही नहीं आती! पर यह सिर्फ़ आपकी ही ग़लती नहीं है।
प्यूबर्टी का दोष?
सभी टीनएजर्स में प्यूबर्टी के दौरान बहुत से बदलाव होते हैं – मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूपों में। परन्तु एक महत्वपूर्ण बदलाव जो प्यूबर्टी के इस समय में होता है – वह होता है आपकी सर्कैडियन रिदम में। हैं? कौन सी रिदम? अरे अरे रुकिए ज़रा!
स्लीप फाउंडेशन के अनुसार,सर्कैडियन रिदम, लैटिन शब्द-“सरका डिएम” से आया है, जिसका अर्थ होता है “दिन के आस–पास“। ये एक अंदरूनी घड़ी हैं जो हमारी शरीर की विभिन्न क्रियाओं को 24 घंटे के चक्र के हिसाब से चलाती है।
प्यूबर्टी से पहले, युवाओं को 8:00 से 9:00 बजे के आसपास नींद आ जाती है।11-13 साल के आसपास प्यूबर्टी के समय, यह कुछ समय आगे बढ़ जाता है। अब उनका शरीर उन्हें रात के लगभग 10:00 से 11:00 बजे के बीच सोने के लिए कहता है। किसी भी टीनएजर के शरीर में यह एक बहुत ही सामान्य बदलाव है, और इसे “स्लीप फेज़ डिले” कहते हैं। नींद की ज़रुरत लगभग दो घंटे आगे बढ़ जाती है।
जब ऐसा पहली बार होता है, टीनएजर के लिए अपने नियमित समय पर सोना मुश्किल हो जाता है, इसलिए अंततः वे देर से सोने लगते हैं। यह बदलाव किशोरावस्था का सामान्य हिस्सा है, बस आपको इस बात का ध्यान रखना है कि आप इलेक्ट्रिक उपकरणों/ गैजेट्स का इस्तेमाल करके अपनी नींद के समय को और आगे ना बढ़ा दें।
आइये देर से सोने के कुछ और कारणों पर ग़ौर करते हैं:
टाइम प्रेशर/ समय का दबाव
अक्सर स्कूल और होमवर्क असाइनमेंट्स के बोझ की वजह से थके हुए होने के कारण, टीनएजर समय पर सो पाने में असमर्थ होते हैं।
आपको होमवर्क करने के लिए सप्ताह के दौरान देर तक जागना पड़ सकता है या फिर वीकेंड पर दोस्तों के साथ ज्यादा समय बिताने की वजह से देर तक जागते हैं, दोनों ही स्थितियों में रात में उल्लू की तरह जागने वाली आदत और पक्की होती जाती है।
उपकरणों का अधिक प्रयोग
नींद ना आने क समस् देर रात तक प्रयोग में लाने वाले स्क्रीन टाइम की वजह से बढ़ सकती है। इन उपकरणों के कारण टीनएजर क दिमाग बंधा हुआ रह सकता है और उनसे आने वाली तरंगें नींद के आने में परेशानी पैदा कर सकती हैं और नींद के बार बार टूटने को भी बढ़ावा दे सकती हैं। तथ्यों द्वारा यह भी पता चलता है कि सेल फ़ोन की रौशनी में ज़्यादा देर काम करने से मेलाटोनिन (हॉर्मोन जो नींद में मदद करता है) का बनना कम हो जाता है।
स्लीपिंग डिसऑर्डर निद्रा रोग
टीनएजर्स स्लीप डिसऑर्डर जैसे रेस्टलेस लेग सिंड्रोम(आरएलएस) से ग्रसित हो सकते हैं जिसकी वजह से लेटने के समय हाथों और पैरों क बार बार हिलाने की इच्छा होती है और नार्कोलेप्सी निद्रा रोग जिसमें दिन के समय नींद आना और एकदम से आने वाली नींद के लक्षण प्रमुख होते हैं; यह सब सोने–जागने के चक्र को प्रभावित करते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं
अटेंशन–डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) और ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी)20 –एक तरह का मानसिक असंतुलन– इनकी वजह से भी किशोर और वयस्कों को नींद ठीक से ना आने की समस्या हो सकती है। हालाँकि, इसकी पहचान डॉक्टर द्वारा ही की जा सकती है।
एंग्जायटी और डिप्रेशन, उदाहरणतः किशोरों और वयस्कों को समुचित नींद ले पाने में मुश्किल बढ़ा सकते हैं और पूरी तरह से ना ली गयी नींद भी इन स्थितियों को बढ़ावा दे सकती है और स्थिति को बिगाड़ सकता है।
समय पर कैसे सोएं
- शाम को चाय/कॉफ़ी आदि का सेवन ना करें।
- चाहे जो भी स्थिति हो,रोज़ रात को समय पर लाइट बंद कर दें (11 बजे से ज़्यादा नहीं)।
- बैडरूम में टीवी न लगाएं, वह नींद से ध्यान हटाता है।
- किसी एक तय समय में रोज़ रात को अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बंद कर दें, खासतौर से लैपटॉप, कंप्यूटर, मोबाइल फ़ोन आदि।
- रात का खाना 9 बजे या उससे पहले खाएं क्योंकि पेट भरा होने पर नींद अच्छी आती है।
- सुबह/शाम अपनी ऊर्जा को खर्च करने के लिए व्यायाम करें। थके हुए शरीर को समय पर नींद आती है।
- सोने से पहले गर्म पानी से नहाएं, या अपने पैरों को गर्म पानी में धोएं /डुबो कर रखें, इससे अच्छी नींद आने में मदद मिलती है।
- चाहे आपको दिन में कितनी ही नींद क्यों ना आये, ज़्यादा देर तक सोने से बचें। 15-20 मिनट की छोटी सी झपकी लें बस उससे ज़्यादा नहीं।
क्या आपके पास साइंस लैब के लिए कोई प्रश्न हैं? उन्हें नीचे टिप्पणी बॉक्स में पोस्ट करें। हम अपने आगामी लेखों में उन्हें जवाब देंगे। कृपया कोई पर्सनल जानकारी न डालें।