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सुकून वाला कोना

क्या पनीर को कुछ ज़्यादा ही भाव दिया जाता है? – बात नज़रिये की

आरव और रिया दोनों हमेशा अपनी अगली बहस की तलाश में रहते हैं।  इस बार, इनका डिबेट पनीर के बारे में है! पनीर जैसा टॉपिक? अरे रुको रुको, काफी दिलचस्प बातचीत हुई! ज़रा सुनिए तो इनकी आज की कैंटीन टॉक! 

बात नजरिए की: समझदारी और व्यक्तिगत विकास

आज आरव और रिया फिर से लड़ रहे हैं लेकिन आज आरव को अपने टॉपिक पर पूरा भरोसा था और अपने तर्क पर भी कि पनीर हर खाने की डिश को बढ़िया कर देता है, जबकि रिया इस बात पर अड़ी थी कि पनीर को ज़बरदस्ती हर डिश में ठेला जाता है

आरव और रिया पनीर की खूबियों के बारे में बहस कर रहे थे कि इसी बीच उनका सीनियर रोहन भी इसमें शामिल हो गया। रोहन अपनी बुद्धिमत्ता और परिपक्वता के लिए जाना जाता था, और वो उनके बकवास को नोटिस करने से खुद को नहीं रोक सका। 

रोहन ने अपनी भौंहो को उचकाते हुए पूछा, “हैल्लो, ये सब क्या चल रहा है?” 

आरव और रिया ने एक-दूसरे को देखा और तुरंत अपने-अपने तर्क शुरू कर दिए। दोनों इस कोशिश में थे कि उनका तर्क सामने वाले पर हावी रहे। रोहन ने उन्हें टोकने से पहले ध्यान से सुना।

नजरिए को समझना जरूरी है 

फिर रोहन ने कहा, “ये सब तो ठीक है लेकिन तुम दोनों कुछ जरूरी बात भूल रहे हो। तुम दोनों एक दूसरे के नजरिए को नहीं समझ रहे हो।” 

आरव और रिया ने हैरानी से से एक दूसरे को देखा, “नजरिए” से उसका क्या मतलब था?”

रोहन ने गहरी सांस ली और उन्हें समझाने लगा। “सोचो कि तुम एक पेंटिग को देख रहे हो। जब तुम वास्तव में उस पेंटिंग के करीब खड़े होते हो, तो तुम केवल ब्रशस्ट्रोक और रंग देख सकते हो, लेकिन जैसे ही तुम पीछे हटते हो, तब तुम्हें केवल पूरी तस्वीर दिखाई देती है। हर एक दूरी तुम्हें पेंटिंग को एक अलग दृष्टिकोण या नज़रिये से देखने नया मौका देती है। वैसे ही लाइफ में होता है, जहां हम अलग-अलग अनुभव या नजरिये से देखते हैं। इसका मतलब यही है कि तुम्हारी ये बहस अलग-अलग नजरिये का नतीजा है!” 

अलग तरह के नजरिये 

अलग नज़रिया?” आरव ने हैरान होकर पूछा।

“हां बिल्कुल। तुम्हारा नजरिया तुम्हारे बैकग्राउंड से प्रभावित हो सकता है। जैसे – तुम कहां से हो, जहां तुम बड़े हुए और वहाँ का खान पान, उठने बैठने, पहनावा, रहने-सोचने का तरीका।” 

“अच्छा, चलो पहले पनीर के टॉपिक पर वापस आते हैं। आरव, तो तुम पनीर के शौकीन हो, है ना? नॉर्थ इंडिया से होने के कारण ये शायद हमेशा से तुम्हारे खाने का मुख्य हिस्सा रहा है, लेकिन एक दक्षिण भारतीय के रूप रिया को शायद इसकी ज़रूरत खाने में महसूस ही न हो! क्योंकि हमारे कल्चर का असर हमारे खाने की चॉइस पर हो सकता है ! इसलिए पनीर आरव के लिए जरूरी हो सकता है लेकिन हो सकता है कि रिया को इससे उतना जुड़ाव महसूस न होगा क्योंकि यह शायद उसके कल्चर में शामिल नहीं है।”

आरव ने सिर हिलाया, “ओह, हां, मैंने इसके बारे में कभी इस तरह नहीं सोचा था।” 

रिया ने भी हामी भरी , “हां, मुझे लगता है कि मुझे समझ में आ रहा है। यह ऐसा है, जैसे मेरा परिवार नारियल के साथ ज़्यादा खाना बनाता है, लेकिन आरव का परिवार दूध का ज़्यादा उपयोग करता है।” 

रोहन ने मुस्कुराते हुए कहा , “बिल्कुल! क्योंकि सांस्कृतिक नजरिया यह तय करता है कि हम चीजों को कैसे देखते हैं और अनुभव करते हैं। यहां तक कि पनीर जैसी साधारण चीज भी।” 

जब रोहन विस्तार से बता रहा था तो आरव और रिया ने ध्यान से सुना। 

इसके अलावा भावनात्मक या इमोशनल नजरिया भी होते है। जैसे- जब तुम दोस्तों के ग्रुप के साथ कोई फिल्म देखते हो, तो अलग-अलग लोग फिल्म के अलग-अलग सीन्स पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं। किसी को एक्शन पसंद आ सकता है, तो किसी को इमोशनल सीन में रोना आ सकता है। 

“यह प्रतिक्रियाएं हर व्यक्ति के अतीत के अनुभवों और वर्तमान भावनाओं पर आधारित होती है, जो अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकती है।”

रिया ने चिल्लाते हुए कहा, “आप ठीक कह रहे हैं! पिछले वीकेंड हमने ‘कभी खुशी कभी गम’ देखी और उस अंतिम संस्कार के सीन में रोने के कारण आरव मेरा मज़ाक उड़ाना बंद नहीं कर रहा था! देखा? मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती कि तुम एक इमोशनलेस रोबोट हो आरव।” 

“ऐसा इसलिए है क्योंकि हो सकता है कि तुम अतीत में किसी पारिवारिक नुकसान से गुज़री हो, और फिल्म ने तुम्हे उस दर्द की याद दिला दी हो जो तुमने महसूस किया था। दूसरी ओर, आरव ने ऐसा कुछ भी अनुभव नहीं किया है और इसलिए हो सकता है कि वह फिल्म की उन भावनाओं से न जुड़ सके ।” 

“इस सिचुएशन में तुम्हारा भावनात्मक नजरिया, तुम्हारे अनुभवों और भावनाओं के आधार पर यह तय करता है कि तुम फिल्म को कैसे देखते और महसूस करते हो।”

रिया ने कहा, “ओह, हां यह समझ में आ रहा है।” 

नजरिया बदल रहा है

आरव ने कहा, “यह ठीक है लेकिन मैं कभी नहीं मानूंगा कि पनीर से बेहतर कुछ भी हो सकता है।” 

इस बात पर रोहन ने कहा, “लेकिन क्या होगा अगर तुम कल कुछ बिल्कुल नया आज़माओ और तुम्हें वो और भी अच्छा लगे? हो सकता है कि तुमने अभी तक अपना पसंदीदा खाना चखा भी न हो!” 

ये सुन कर आरव सोच में पड़ गया। उसने भौंहें चढ़ायीं और कहा, “लेकिन अगर मैं हर दूसरे दिन अपनी राय बदलूंगा तो कोई भी मुझे गंभीरता से नहीं लेगा।” 

रोहन ने उसे भरोसा दिलाया और कहा, “ऐसा लग सकता है लेकिन नजरिया बदलना सामान्य है और अच्छा भी। यह एक संकेत है कि तुम सीख रहे हो, बढ़ रहे हो और दूसरो के अनुभवों से सहानुभूति रखते हो। जब हम अन्य लोगों के नजरिये पर विचार करना शुरू करते हैं, तो हम अधिक समझदार हो जाते हैं और शायद बेहतर दोस्त, भाई-बहन या पार्टनर बन सकते हैं।”

रोहन की बातों से आरव और रिया को अलग-अलग नजरिये को समझने और उनका सम्मान करने के महत्व का एहसास होने लगा। उन ये समझ आया कि उनकी अपनी राय पहेली का सिर्फ एक टुकड़ा भर थी, और दूसरों के नजरिये को समझना बहुत ज़रूरी हैं 

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