नया स्कूल? फ़िर से?
अमोघ अपनी डायरी का एक पन्ना साझा कर रहा है क्योंकि वह फिर से स्कूल बदलने की तैयारी में है। एक मुश्किल अलविदा या एक नई शुरुआत का मौका। जानिए डियर डायरी में।
प्रिय डायरी,
“तुम नए स्कूल में जा रहे हो!”
ये सात शब्द एक बच्चे की पूरी दुनिया हिला देते हैं। और मैं सच में बोल रहा हूँ सब कुछ हिल जाता है।
ये शब्द दिमाग में उतरते हैं और अचानक समझ आता है कि इसका मतलब क्या है, इसका मतलब है अपने दोस्तों को आखिरी बार देखना, अपने टीचर्स को आखिरी बार देखना, वो जाना-पहचाना स्कूल का रास्ता, वो स्कूल का गेट, वो क्लासरूम – सब कुछ आखिरी बार। सोचो, जिन लोगों के साथ हम रोज़ 8 घंटे बिताते थे, शायद उन्हें फिर कभी ना देखें। ऐसा लगता है जैसे सब कुछ जो हम प्यार करते थे, जिसके लिए जीते और हँसते थे – बस खत्म हो रहा है।ठीक है, शायद इतना ड्रामा ना हो… लेकिन फिर भी।
ये जो फीलिंग होती है ना, वो बहुत मिक्स्ड होती है – शॉक, एक्साइटमेंट, स्ट्रेस, उदासी, और जो भी बीच में आता है। मैं अब तक तीन बार स्कूल और देश बदल चुका हूँ, पर हर बार स्कूल बदलने की बात सुनते ही अंदर से अजीब-सा लगने लगता है। अब फिर से स्कूल बदल रहा हूँ।
और वो सात शब्द अब भी मुझे वो दिन याद दिला देते हैं जब मैंने पहली बार स्कूल बदला था, तब मैं सिर्फ 6 साल का था। पापा का न्यू यॉर्क ट्रांसफर हुआ था, और हमें डेढ़ महीने में देश छोड़कर जाना था। और जो भी स्कूल बदलने के बारे में मैंने ऊपर लिखा, बस समझ लो कि अगर आप देश भी बदल रहे हो तो वो सब फीलिंग्स आठ गुना ज़्यादा हो जाती हैं।
तब मुझे सच में नहीं पता था कि क्या फील करना चाहिए। सीधी बात बताऊं, मैं बस सोच रहा था – “अब मैं क्या करूं? न्यू यॉर्क? वो क्या है? हाँ? लेगो? बर्थडे पर लेगो मिल सकता है? प्लीज़… लेगो स्टार वॉर्स? डार्थ वेडर? काइलो रेन? हाँ? द फोर्स अवेकन्स थिएटर में चल रही है? पापा? देख सकते हैं क्या?”
मतलब, तब मुझे ज़्यादा फर्क नहीं पड़ा था।
जब हम छोटे होते हैं तो शायद हम थोड़े पॉज़िटिव होते हैं, क्योंकि मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा कि मै अपने स्कूल के दोस्तों को आखिरी बार देखूंगा।
उदासी जैसी कोई फीलिंग नहीं थी। मुझे तो बस इस बात की खुशी थी कि न्यू यॉर्क में लेगो का वॉकर सेट इंडिया से जल्दी आने वाला था।
पर अब फास्ट फॉरवर्ड करते हैं – दो साल बाद, जब मैं न्यू यॉर्क में थर्ड ग्रेड पूरा कर रहा था, वो पाँच शब्द फिर से सुनने को मिले। उसके बाद बोले – “हम डबलिन, आयरलैंड जा रहे हैं!”
शुरुआत में मैं बस देखता रह गया – कौन-सा डबलिन? और जब मैं अपने सारे लेगो सेट्स डबलिन (जो आयरलैंड में है) में कैसे शिफ्ट करूं, ये सोच रहा था, तब समझ आया कि अब फिर से सब बदलने वाला है।
और फिर दिल में थोड़ी बेचैनी होने लगी। अगले दिन स्कूल में मैंने अपने सभी दोस्तों को बताया कि एक महीने में शायद मैं उन्हें कभी नहीं देख पाऊंगा।
हर दिन मैं और ज़्यादा बेचैन होता गया। न्यू यॉर्क में मुझे अब जाकर थोड़ा अपना-सा लगने लगा था, और अब फिर से जाना है? मैं अंदर से टूट सा गया था, और समझ नहीं आ रहा था कि आयरलैंड में मैं कैसे सर्वाइव करूंगा।
फिर वो दिन आ गया। आयरलैंड में स्कूल का पहला दिन। अब फुटबॉल को फिर से “सॉकर” नहीं, “फुटबॉल” बोलना पड़ेगा।स्कूल के आठ घंटे बाद लगा – इतना बुरा नहीं था। शायद सब ठीक हो जाए।
फिर चौथी क्लास निकली, फिर पाँचवीं, फिर छठी, और अब मैं सातवीं के एंड में हूँ, और फिर एक बड़ा अनाउंसमेंट होता है –
“तुम इंडिया वापस जा रहे हो। हमने तुम्हें एक शानदार IB स्कूल में दाखिला दिलाया है–”
क्या?!
इस बार तो लगा कि दिमाग ही घूम जाएगा। जैसे ही आयरलैंड अच्छा लगने लगा, वापस इंडिया? अब जब भी किसी दोस्त की जोक पर हँसता हूँ, सोचता हूँ – शायद ये आखिरी बार है। जब भी लंच खता हूँ, लगता है – शायद ये इस देश का आखिरी सैंडविच है। शायद ये आखिरी सेंट पैट्रिक डे परेड…
अब फास्ट फॉरवर्ड करते हैं – आठवीं क्लास। मैं इंडिया में हूँ, और ज़िंदगी मज़े में है। कई दोस्त बन चुके हैं, क्रिकेट खेल रहा हूँ, चेस टूर्नामेंट्स में भाग ले रहा हूँ। साल जल्दी निकल जाता है, और आती है नौंवी क्लास।
सब अच्छा चल रहा है। मुझे अपनी लाइफ बहुत पसंद आ रही है। अब बस एक ही चीज़ है जो मूड खराब कर सकती है – अगर कोई मुझे याद दिला दे कि इंडिया 2023 का क्रिकेट वर्ल्ड कप हार गई थी।वरना, लाइफ एकदम मस्त चल रही है।
और तभी… फिर से वही दिन आ जाता है…
नया स्कूल। नया देश। नए लोग। अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल खेलना – शायद आखिरी बार। सेकंड फ्लोर का बाथरूम – आखिरी बार। फर्स्ट फ्लोर का बाथरूम – आखिरी बार। थर्ड फ्लोर का बाथरूम – आखिरी बार।
ये सब ख्याल मेरे दिमाग में घूम रहे थे स्कूल के आखिरी दिन। और सच कहूं, मुझे फिर से कुछ समझ नहीं आ रहा कि मैं कैसा महसूस करूं।
पर शायद ये भी ठीक है। किसी समझदार इंसान ने कहा था – “परिवर्तन ही एकमात्र स्थायी चीज़ है।” तो शायद ये वही परिवर्तन है, जो मेरी ज़िंदगी में बार-बार आ रहा है।
क्योंकि स्कूल बदलना, एक अनुभव के खत्म होने जैसा हो सकता है, लेकिन साथ ही एक नए सफर की शुरुआत भी होता है। क्योंकि हर नौवीं क्लास के आखिरी दिन के बाद, एक दसवीं क्लास का पहला दिन आता है।
शायद सब कुछ आसान तब होता है, जब हम बदलाव को गले लगाते हैं।
जब हम उसे नॉर्मल मान लेते हैं, लड़ते नहीं उससे। क्योंकि… अगर बदलाव ना होता, तो शायद हम आज यहां होते ही नहीं।
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