क्या इसमें मेरी ग़लती है?
14 वर्षीय गुंजन दौड़ते दौड़ते घर पहुंची और वह बहुत डरी हुई थी क्योंकि लड़कों के एक ग्रुप ने उसकी शॉर्ट्स और टांगों पर भद्दे कमेंट्स किये। उसे लगा कि यह उसकी गलती थी कि उसने ऐसे कपड़े पहने। पर क्या सही में ऐसा था? आइये देखें इस हफ़्ते की जिज्ञासा स्टेशन में।
मेरी गलती की वजह
“दी, क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकती हूँ?” सहमी हुई गुंजन ने पार्क से आकर अपनी दीदी से पूछा।
उसकी बड़ी दीदी नमिता ने उसके चेहरे की परेशानी को भांप लिया और उसके पास बैठ गयीं, “तुम ठीक तो हो ना? कुछ हुआ है क्या?”
“मुझे समझ नहीं आ रहा कि मुझे इस बारे में बुरा लगना चाहिए या नहीं, क्योंकि मेरी गलती की वजह से ही यह हुआ… ” आगे बोलने की कोशिश करते हुए गुंजन की आवाज़ लड़खड़ाने लगी।
“अरे, ठीक तो हो ना तुम? मुझे बताओ कि हुआ क्या है। तुम जानती हो ना कि तुम मुझे कुछ भी बता सकती हो “, नमिता ने चिंता से गुंजन का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा।
“दी, मुझे डांटना मत प्लीज, पर जब मैं पार्क में सैर कर रही थी, कुछ अंजान लड़के मुझे छेड़ रहे थे और मुझे बहुत खराब लगा। वे इस तरह की बातें कह रहे थे जैसे:
“आहा….. ये टाँगें कितनी सुन्दर हैं !”
“क्या तुम्हारे शॉर्ट्स और भी शार्ट(छोटे) हो सकते हैं?”
“अगर तुम्हे अटेंशन चाहिये तो यहाँ आ जाओ!”
“दी, आय ऍम सॉरी। मुझे शायद इस तरह के कपड़े नहीं पहनने चाहिए थे। यह सब मेरी गलती है! मैं तो उन लड़कों को जानती तक नहीं “, गुंजन ने कहा।
“हे भगवान! गुंजन, तुम ठीक हो ना? कौन थे वो लड़के? क्या वो हमारे पड़ोस के थे? नमिता को झटका लगा।
“मुझे नहीं पता, दी। मैनें उन्हें पहले देखा है पर वे ऐसे नहीं लगते थे कि मुझसे इस तरह की बातें कहेंगे“, गुंजन ने कहा।
तुम्हारी गलती नहीं है
“तुम खुद को दोषी क्यों मान रही हो? यह तुम्हारी गलती नहीं है। तुम जो भी चाहे कपड़े पहन सकती हो। अगर लोगों को उससे परेशानी है या वे इस तरह की गलत हरकतें करते हैं जैसे उन लड़कों ने तुम्हें छेड़ा तो यह उनकी गलती है!” नमिता ने ज़ोर दिया।
“आपको पता ही है कि मुझे वे शॉर्ट्स पहनने कितने पसंद हैं पर मुझे नहीं लगता कि मैं उन्हें फिर कभी पहनना चाहूंगी। वे मुझे हमेशा याद दिलाएंगे जो भी मेरे साथ आज हुआ“, गुंजन डरी हुई थी।
“मुझे बहुत बुरा लग रहा है गुंजन कि यह सब हुआ। इसमें किसी भी तरह तुम्हारी गलती नहीं है। इसको अपने पर मत लो। बदकिस्मती से यह सब हमारे समाज में आमतौर पर लड़कियों के साथ होता है।” उसकी बहन ने थोड़ा रुक कर कहा।
“क्या सच में? मैं हैरान हूँ “, गुंजन ने जवाब दिया।
“तुमने क्या किया जब उन्होंने तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार किया?” नमिता ने पूछा।
“पता नहीं। मैं बस बहुत डर गयी थी। एक पल के लिए मैं जम ही गयी थी। मुझे समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ क्योंकि यह सब इतना जल्दी हुआ, कि जितनी जल्दी हो सका, मैं वहां से भाग गयी“, गुंजन ने जवाब दिया।
“भगवान का शुक्र है कि तुम सुरक्षित हो!” नमिता ने ठंडी सांस लेते हुए कहा।
” उन्होंने ऐसा क्यों किया दीदी? मुझे अब पार्क में जाते हुए भी डर लग रहा है “, गुंजन ने कहा।
” बदकिस्मती से, कुछ लड़के लड़कियों को वस्तु समझते हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें इस तरह की हरकतें करने का अधिकार है और लड़कियों को जिस डर का अनुभव होता है, उससे उन लड़कों को अपनी ताकत दिखाने का और भी मौका मिल जाता है। यह बहुत दुःखद है कि लगभग हर युवा लड़की इस तरह के डर का किसी ना किसी तरह से अनुभव करती है“, नमिता ने जवाब दिया।
“क्या यह आपके साथ भी हुआ है?” गुंजन ने पूछा।
“हाँ, बहुत बार हुआ है। और सिर्फ मेरे ही साथ नहीं बल्कि बहुत सी और लड़कियों और स्त्रियों के साथ भी। पर पता है कि सबसे बुरी बात क्या है, हम में से कई लोग सोचते हैं कि यह लड़की की ही गलती है,” नमिता ने कहा।
“हाँ, मुझे भी ऐसा ही लगा“, गुंजन बोली।
“अगर आप अकेली चलती हैं, और अपनी पसंद के कपड़े पहनती हैं, या फिर आप अपनी पसंद का कुछ भी करती हैं, तो लड़कियों के साथ चाहे जो भी हुआ हो,समाज अक्सर लड़कियों को ही इसका जिम्मेवार ठहराता है पर यह उनकी गलती नहीं है। यह तो उन पुरुषों की मानसिकता है जो यह सोचते हैं कि वे स्त्रियों पर अपनी ताकत का प्रयोग कर सकते हैं और उनके साथ जैसा चाहे व्यवहार कर सकते हैं“, उसकी बहन ने निराशाजनक आवाज़ में कहा।
क्या किया जा सकता है?
“पर दीदी, मुझे डर लग रहा है।अगर फिर से ऐसा हुआ तो?तब मैं क्या करूंगी?गुंजन ने पूछा।
“यह एक बहुत ही कठिन सवाल है। आदर्श रूप से तो मुझे तुम्हें कहना चाहिए कि उन्होंने जो किया वह बहुत परेशान करने वाला और गलत है। पर ऐसा करने में बहुत खतरा है। तुम्हे नहीं पता कि वे क्या कर सकते हैं। तुम्हें यह भी नहीं पता कि वे किस तरह इसका जवाब देंगे“, उसके बहन ने कहा।
“अगर यह गलत है तो हम इसको ऐसे ही उनका विरोध किये बिना कैसे छोड़ सकते हैं? फिर मैं अपने लिए कैसे आवाज़ उठा सकती हूँ? गुंजन ने पूछा।
” मुझे पता है कि जिस बात में आप सही हो उसके लिए कुछ ना कर पाने में असमर्थ होने से बहुत ज़्यादा परेशानी होती है। ऐसा करना अक्सर तभी सुरक्षित होता है जब आप किसी खुली जगह में हो और उम्र में बड़े बहुत से लोग आपके आस–पास हों जो आपकी मदद कर पाएं।” उसकी बहन ने जवाब दिया।
गुंजन बहुत ध्यान से सुन रही थी।
” जब भी आपके साथ ऐसा कुछ हो, अपने से किसी बड़े और अनुभवी व्यक्ति को बता दें। वे आपका मार्गदर्शन करेंगे और आपकी सहायता करेंगे कि आप क्या कर सकती हैं। जैसे कि तुमने मुझसे बात करके अच्छा किया! बड़ी होने के नाते, मैं यह समझती हूँ कि इस बात को अपने पड़ोस में / आसपास के गली मुहल्लों में किस तरह उठाया जाये,” नमिता ने कहा।
गुंजन ने सर हिलाते हुए कहा, ” काश मैं उन्हें एक थप्पड़ मार पाती!”
“तुम्हें उस स्थिति में गुस्से में आकर ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए। सही तरीका यह है कि तुम्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि तुम किसी सुरक्षित जगह में आ जाओ जहाँ बहुत से लोग हों और अपने माता–पिता या अपने से किसी बड़े से संपर्क करें जिस पर आप विश्वास करते हों। अगर आपके पास फ़ोन है, तो 100 नंबर डायल करें– जो पुलिस का नंबर है“, नमिता ने कहा।
“पर मैं तो बहुत डर गयी थी। कुछ सूझ ही नहीं रहा था“, गुंजन ने कहा।
“हाँ, मैं समझ सकती हूँ। क्योंकि तुम्हारे साथ ऐसा पहली बार हुआ था। पर अगर कभी भी दोबारा ऐसा हुआ, तो शांत रहने की कोशिश करना। मदद के लिए आवाज़ लगाना। चिल्लाना– इससे वे डर जाते हैं। और इस बात की चिंता मत करना कि तुम्हारे माता–पिता तुम्हें अकेले जाने के लिए या बिना बताये कहीं जाने के लिए डाँटेगे वगैरह। फिर भी उन्हें बताना बहुत ज़रूरी है क्योंकि वे सिर्फ इसीलिए नाराज़ होंगे क्योंकि उन्हें बुरा लगेगा कि उनके बच्चे को ऐसी किसी चीज़ का सामना करना पड़ा“, उसकी बहन ने समझाया।
“मैं याद रखूंगी। पर सच में दीदी, मुझे यह सब अच्छा नहीं लग रहा। मैं हर समय ऐसी जगह में तो नहीं रह सकती जहाँ मुझे हमेशा अपने सुरक्षित होने का ध्यान रखना पड़े “, गुंजन ने कहा।
“तुम्हारे साथ आज जो भी हुआ उसके लिए उदास और परेशान होना बिलकुल जायज़ है, गुंजन। यह तुम्हारी गलती नहीं है और चाहे जो भी हो मैं तुम्हारा साथ दूँगी“, उसकी बहन ने गुंजन की भावनाओं को समझते हुए कहा।
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