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फीलिंग्स एक्सप्रेस

काश की लॉकडाउन वाली लाइफ दोबारा मिल पाती!

कोविड में लगे लॉकडाउन के तीन साल के दौरान अमृता को जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ा है, उसे उसने हमारे फिलिंग एक्सप्रेस के साथ शेयर किया है।

लॉकडाउन में फंस जाना

कोविड-19 के बाद मेरी लाइफ पूरी तरह से बदल गई, जो मैंने सपनों में भी नहीं सोचा था। उस समय सब कुछ अनिश्चित लग रहा था लेकिन इस समय मेरी फैमिली मेरी सपोर्ट सिस्टम थी। इस लॉकडाउन ने बता दिया कि लाइफ बहुत नाजुक है और कुछ भी यहां परमानेंट नहीं है।

जबकि बाकी लोग चाहते थे कि लॉकडाउन जल्दी खत्म हो लेकिन मैं अब भी कंफ्यूज थी। स्कूलों के फिर से खुलने और दोस्ती फिर से शुरू होने के बावजूद, मैं इस भावना से छुटकारा नहीं पा सकी कि मेरे अंदर कुछ बदलाव आए हैं। मैं अपने पुराने लाइफ को बरकरार रखना चाहती थी लेकिन इस नई रिएलिटी में अपनी जगह नहीं पा सकी।

अकेले रहना

महामारी के बाद अपनी लाइफ की शुरुआत करना जितना मैंने सोचा था, उससे बहुत ज्यादा मुश्किल था। सोशल एंजाइटी और अकेले रहना मेरे लाइफ का हिस्सा बन गई थी। लेकिन अचानक मुझे लोगों से भरी दूनिया में धकेल दिया गया। यह दिखावा करते हुए कि सब कुछ सामान्य हो गया था। कोई बदलाव नहीं हुआ, बस चीजें जिस तरह थीं, उसमें अचानक वापसी हो गई।

महामारी ने मुझे जरुरी सबक सिखाए, लेकिन इसने मुझे अनसुलझे भावनाओं के साथ भी छोड़ दिया। मुझे जल्दी से उस दुनिया में ढलना पड़ा जो पूरी तरह से बदल गई थी, जबकि लोग पुरानी यादों से चिपके हुए थे। ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं ही एकमात्र व्यक्ति थी, जो इस तरह की स्थिति के बीच सामंजस्य बिठाने के लिए संघर्ष कर रही थी।

बदलाव को स्वीकार करना

मुझे यह एहसास हो गया है कि मैं उस स्थिति में नहीं लौट सकती, जो मैंने महामारी से पहले महसूस की थी। मैं बदल गई हूं, और लाइफ के प्रति मेरा नजरिया भी बदल गया है। जो चीज़ एक समय चुनौतीपूर्ण/मुश्किल लगती थी, वो अब आसान लगने लगी है, और जिन चीज़ों को मैं हल्के में लेती थी, वो अब चुनौतीपूर्ण हो गई हैं। लेकिन मैंने अपने चुनौतियों को अपनों के साथ शेयर करने की शक्ति भी खोज ली है।

फैमिली और दोस्तों के साथ समय बिताना, बातचीत में शामिल होना और अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलना मेरे ठीक होने के लिए जरुरी है। मैंने सीखा है कि दोबारा नोर्मल महसूस करने के लिए मुझे अपने पुराने तरीके में लौटने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय, मैं इस बदली हुई दुनिया में नए मौकों को अपनाती हूं।

अच्छे दिन  

महामारी के दौरान उम्मीद ही थी, जिसने हम सबको जोड़े रखा था। हमें लगा था कि अच्छे दिन वापस आ जाएंगे, जहां हर कोई हेल्दी होगा और एक दिन महामारी खत्म हो जाएगी। लेकिन लाइफ कभी भी पहले जैसे नहीं हो सकती लेकिन उम्मीद हमें नए भविष्य की ओर लेकर जाती है।

नाम बदल दिए गए हैं. यह लेख हमारे टीनबुक एडवाइजरी बोर्ड (टीएबी) के एक सदस्य द्वारा लिखा गया है। TAB क्या है और इसमें कैसे शामिल हों, इसके बारे में अधिक जानने के लिए कृपया यहां क्लिक करें।

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