बड़े होना: वह सब जो आप जानना चाहते हैं!
आरव, सारा और उनके दोस्त बड़े हो रहे हैं। इस बारें में वह हमसे अपनी कहानियाँ, अनुभव, डाऊट्स और सवाल शेयर कर रहे हैं। आईये उनसे जुड़िये। हम वादा करते हैं कि आप बहुत कुछ सीखेंगे और वह भी ढेर सारे मज़े के साथ!
बढ़ते बाल, बढ़ती लंबाई और बढ़ते सवाल
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हेलो, मेरा नाम आरव है। मैं रांची में रहता हूं और 8वीं क्लास में हूं। पिछले कुछ हफ्तों से मेरी ठुड्डी पर छोटे बाल नजर आ रहे हैं। पापा ने मुझे बताया कि यह बड़े होने का संकेत है – यानी कि बच्चे से व्यस्क होने की प्रक्रिया शुरू हो रही हैं। मैं काफी नर्वस हूं लेकिन साथ ही इसे लेकर थोड़ा उत्साहित भी हूं!
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अम्मी कहती है की अब मैं बड़ी हो रही हूं तो मुझे अब अपने फैसले भी ख़ुद करने चालू करना होगा। ओह, सब कुछ कितना रोमांचक होने वाला है … लेकिन मैं कैसे तय करूंगी कि मुझे कॉलेज में क्या पहनना है! स्कूल यूनीफॉर्म के साथ तो कितना आसान होता हैं…! वैसे, मेरा नाम सारा है और मैं सूरत में रहती हूं। मैं भी 8वीं क्लास में हूं!ज़रा इस विषय पर यह वीडियो देखो (बाकी की कहानी नीचे पढ़ो)
क्या चल रहा है?
- आप और आपके दोस्त इस समय ऐसे उम्र में हो जब शरीर और मन में बदलाव आते हैं।
- आप में से कुछ लोगों में पहले ही बदलाव शुरू हो चुके होंगे, जबकि कुछ लोगों में बदलाव शुरू होने में अभी कुछ समय लगेगा।
- इनमें से कुछ बदलावों से आप काफी उत्साहित होंगे और कुछ से आप असहज भी हो सकते हैं।
- याद रखें कि ये बदलाव बहुत आम हैं और हर किसी के साथ अलग-अलग समय पर होते हैं।
वे क्यों नहीं समझते हैं?
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मैं हूँ मीरा। तुम्हें पता है, आज मम्मी के साथ मेरी लड़ाई हो गई। उन्होंने मुझे अपने दोस्तों के साथ ज़्यादा देर तक ना रहने और पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा। वैसे तो मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान देती हूं लेकिन मुझे अपने दोस्तों के साथ रहना अच्छा लगता है। वो ये चीज़ क्यों नहीं समझती हैं? मम्मी-पापा हमें कुछ समय के लिए अकेला क्यों नहीं छोड़ सकते हैं!
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मैं हूँ तेंजिन। आजकल मैं बहुत चिंतित रहता हूँ। कभी यह चिंता सताती है कि मैं परीक्षा में फेल हो जाऊंगा। फिर मुझे अपने चेहरे के मुंहासों को लेकर चिंता होने लगती है। फिर अभी कुछ दिनों में स्पोर्ट्स डे आने वाला है और अभी डिबेटिंग कॉम्पीटीशन के लिए तैयारी भी करनी है! सच में …एक साथ ना जाने कितनी चीजें चल रही हैं!
शरीर और मन
- जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारे शरीर और दिमाग के अंदर कई बदलाव होते हैं।
- मोटे तौर पर हम इन्हें भावनात्मक, सामाजिक, मानसिक (बौद्धिक) और शारीरिक बदलाव इन चार मुख्य श्रेणियों में बांट सकते हैं।
- भावनात्मक बदलाव का मतलब है कि हम जो महसूस करते हैं उसमें होने वाले बदलाव, जैसे कि दूसरों के प्रति गुस्से और आकर्षण की भावना।
- सामाजिक बदलाव का यहां मतलब है कि हम दूसरों से कैसे बातचीत करते हैं (या करना चाहते हैं)। जैसे कि दोस्तों के साथ अधिक समय बिताने की इच्छा।
- बौद्धिक या मानसिक बदलाव का मतलब यह है कि हम कैसे सोचते हैं और किसी जानकारी को कितना समझ पाते हैं। जैसे कि शिक्षा (एकेडमिक) या खेलों से जुड़े निर्णय लेना।
- शारीरिक बदलावों का अर्थ शरीर में होने वाले बदलाव से है। जैसे कि दाढ़ी आना, मुंहासे निकलना, लंबाई बढ़ना आदि।
पसंद, नापसंद
हमारा कमाल का शरीर
- जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारा शरीर हमें वयस्क बनाने के लिए कई तरह के बदलावों से गुजरता हैं।
- यह ज़रूरी है कि हम इन बदलावों को समझें और इन बदलावों के साथ ही अपने शरीर को स्वीकार करें।
- हमें अपने शरीर में हो रहे बदलावों को सामान्य एवं स्वस्थ मानकर स्वीकार करना चाहिए और यह मान लेना चाहिए कि बाल, मुंहासे, स्तन बढ़ना – यह सब कुछ शरीर को विकसित करने की प्रक्रिया है।
- साथ ही यह भी समझना चाहिए कि सभी में अलग-अलग तरह के बदलाव होते हैं।
- हम पौष्टिक खाना खाकर और फिट रहकर भी अपने शरीर की मदद कर सकते हैं।
- अंत में, हमें अपने शरीर से प्यार करना चाहिए। हमारा स्वस्थ शरीर ही है जो हमें ज़िंदगी जीने में मदद करता है – जिससे हम अपनी छुट्टियों का मज़ा लेते हैं, सही ढंग से परीक्षा की तैयारी कर पाते हैं और इंफेक्शन से लड़ पाते हैं।
ओह, यह कितना मुश्किल है!
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कभी-कभी मुझे लगता है कि काश हम हमेशा बच्चे ही रहते! सिर्फ अब्बा और अम्मी ही हमारे लिए सभी फैसले लेते।
कल दीपिका मुझसे मूवी चलने की जिद कर रही थी। मेरे सभी दोस्त भी जा रहे थे। अब्बा, अम्मी ने कहा कि मुझे अपना फैसला ख़ुद करना चाहिए।
मुझे जाना भी था पर ढेर सारा होमवर्क भी करना था। मैं डिसाइड ही नहीं कर पा रही थी!
ढेर से विकल्प
- जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं हमें अपनी पसंद की चीजें करने और निर्णय लेने की भी आवश्यकता होती है।
- निर्णय लेना और चुनाव करना बड़े होने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- इस उम्र में आपको अपने फैसले खुद करने पड़ सकते हैं । जैसे कि किसके साथ समय बिताना है और किन कामों (एक्टिविटी) में शामिल होना है।
- इसका मतलब यह भी है कि हमें यह चुनना होगा कि हमारे लिए बेहतर और अच्छा क्या है।
- कभी-कभी अकेले निर्णय लेना आसान नहीं होता है। इसलिए अपने किसी करीबी या जो आपकी परवाह करते हों, जैसे अपने मम्मी-पापा या किसी भरोसेमंद व्यक्ति की मदद ले सकते हैं।
ये या वो
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हैलो, मैं हूँ मारिया। कल मुझे अपनी पहली पॉकेट मनी मिली! लेकिन मैं बहुत उलझन में हूँ … इसका क्या करुं। मैं काफी समय से आर्ट और क्राफ्ट की किताबें खरीदना चाहती थी लेकिन अभी मुझे नए जूते भी चाहिए। मम्मी कहती है कि यह मेरा पैसा है। इसलिए मुझे ही तय करना होगा कि इनका क्या करना है। लेकिन कैसे!!
चलो पता करते हैं
- निर्णय लेने का सबसे आसान तरीका यह है कि हम जो विकल्प चुनने जा रहे हैं उसके बारे में हमें अधिक से अधिक जानकारी इकट्ठा कर लेनी चाहिए।
- अगर हमें किसी चीज के बारे में पूरी जानकारी है, तो फिर निर्णय लेना आसान हो जाएगा।
- कुछ जानकारियां हमें ख़ुद ही जुटानी पड़ती हैं जैसे कि अपनी जरूरतों को समझना और उन्हें प्राथमिकता देना। मुझे किताब की ज्यादा जरूरत है या जूतों की? मुझे किस चीज का उपयोग पहले करना है?
- कुछ जानकारियां बाहर से जुटानी पड़ती हैं और इनके लिए आप किताबें, इंटरनेट या लोगों से मदद ले सकते हैं। जैसे कि किताब की कीमत क्या है और जूते की कीमत कितनी है?
- मारिया को लग सकता है कि उसे कोई विकल्प चुनने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि एक बार जब उसे हर एक चीज की कीमत पता चल जाएगी तो उसे आसानी से समझ में आ जाएगा कि वो अपनी पॉकेट मनी से दोनों चीजें खरीद सकती है।
- या अपनी चचेरी बहन से बात करने के बाद उसे लग सकता है कि यह किताब तो उसकी बहन के पास भी है तो उसी से कुछ दिनों के लिए लेकर पढ़ लेगी। मारिया तब जूते खरीद सकती है।
- या उसे अपनी जरूरतों का आकलन करने के बाद लग सकता है कि अगली कक्षा तक वास्तव में उसे इस किताब की जरूरत हैं नहीं … इसलिए अगले महीने की पॉकेट मनी से इसे खरीदने तक का इंतजार कर सकती है।
- किसी भी स्थिति के बारे में अधिक जानकारी होने से हमें बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलती है।
और फिर कठिन फ़ैसले का वक्त
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मैं हूँ अमित। कल स्पोर्ट्स क्लास के बाद ऋषि ने मुझे स्कूल के बाहर खेल के मैदान में आने के लिए कहा। हम अक्सर अपने पड़ोस के लड़कों के साथ स्कूल के बाद वहां खेलते हैं। ग्राउंड में जाते समय ऋषि ने अपने बैग से एक सिगरेट निकाली। उसने कहा कि वो अपने चाचा के घर से एक सिगरेट चुराकर लाया है। उसने मुझे ट्राई करने के लिए कहा। मैं मना तो नहीं कर सका लेकिन मुझे बहुत बेकार लगा। आज सभी लड़के फिर से मैदान में इकट्ठा हो रहे हैं और सभी फिर से साथ में सिगरेट पीने की कोशिश करेंगे। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करुं! ऋषि मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। मैं उसे किसी परेशानी में नहीं डालना चाहता।
निर्णय लेने में मददगार ये सात सवाल (द सेवन स्टेप लैडर)
- कभी-कभी निर्णय लेना या चुनाव करना वास्तव में बहुत कठिन हो सकता है।
- ऐसे समय में आप निर्णय लेने के लिए ख़ुद से ये सात सवाल पूछ सकते हैं।
- ‘सेवन स्टेप लैडर’ में सात चरण शामिल होते हैं जिसके तहत आपको कोई निर्णय लेने के लिए एक-एक करके इन सात पहलुओं पर विचार करने की आवश्यकता होती है।
ये रहे वो 7 स्टेप:
मेरे माता-पिता या वे लोग क्या कहेंगे जिन पर मुझे भरोसा है?
क्या मैं इसे किसी मित्र या परिवार के सदस्य को चुनने का सुझाव दूंगा?
मैं इस विकल्प के बारे में क्या महसूस करता हूं?
मैं इस विकल्प के बारे में क्या सोचता हूं?
क्या मेरा पसंदीदा विकल्प मेरे लिए सुरक्षित है? क्या यह मेरे लिए लाभदायक है?
मेरे लिए कौन सा विकल्प सबसे अच्छा है? और क्यों?
मेरे पास क्या विकल्प हैं?
- यदि अधिकांश सवालों का जवाब ‘ना’ है तो बेहतर होगा आप उस निर्णय पर आगे विचार ना करें।
- यदि यह तय करना मुश्किल है तो अपने माता-पिता, शिक्षकों या किसी भरोसेमंद व्यक्ति से सलाह लेने के बारे में सोचें।
- भरोसेमंद व्यक्ति वो है जो आपसे उम्र में बड़ा हो और जिस पर आप पूरी तरह से भरोसा कर सकते हों साथ ही वह जानकार भी हो जिससे वह निर्णय लेने में आपकी मदद कर सके।
- ये हमारे माता-पिता, बड़े भाई-बहन या चचेरे भाई, दादा-दादी या हमारे शिक्षक में से कोई भी हो सकते हैं।
- जिनसे हम बिना किसी संकोच, शर्मिंदगी और डर के किसी भी समय कुछ भी कह सकते हैं। जो हमेशा हमारी बात सुनने को तैयार हो और हमारी मदद कर सकें।
- थोड़ा समय निकालकर अपने भरोसेमंद व्यक्ति की तलाश करें और फिर उनसे अपने दिल की बात कहें।
- यदि आप किसी व्यक्ति को लेकर सहज नहीं हैं या आपको उस पर भरोसा नहीं है तो ध्यान से सोचें कि क्या आपको उस पर भरोसा करना चाहिए या आपको किसी और से बात करनी चाहिए।
अब मुझे पता है
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तो कुल मिलाकर बात ये है कि बड़े होने पर कई बदलावों से गुजरना पड़ता है और ये सभी बदलाव सामान्य है … और यह सबसे साथ होता है।
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ये बदलाव कई तरह के हो सकते हैं – शारीरिक, सामाजिक, भावनात्मक और मानसिक (बौद्धिक)। हमें अपने शरीर के लिए आभारी होना चाहिए खासकर जब वह इन बदलावों से गुज़रता हैं।
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बड़े होने का मतलब यह भी है कि अपने निर्णय ख़ुद लेना। इसके लिए हमें और अधिक जानकारी हासिल करने और जरूरी पहलुओं पर विचार करने (द सेवेन स्टेप लैडर) की जरूरत है। साथ ही साथ भरोसेमंद व्यक्ति से बात करने (यदि हम कर सकते हैं) की भी आवश्यकता है।
बढ़ती उम्र – एक रिकैप
- यह एक सामान्य प्रक्रिया है।
- इसमें हमारे शरीर और दिमाग में बहुत सारे बदलाव होते हैं।
- इन बदलावों को सामान्य और स्वस्थ रूप में समझना और स्वीकार करना महत्वपूर्ण हैं।
- यह निर्णय लेने और जिम्मेदारियां उठाने से भी संबंधित है।
- सही और सुरक्षित निर्णय लेना ज़रूरी है।
- सही निर्णय लेने के लिए जानकारी इकट्ठा करना जरुरी है।
- यह जानकारी इंटरनेट, माता-पिता, शिक्षकों, किताबों, विश्वसनीय और पुख्ता स्रोतों समेत अपनी जरूरतों की बेहतर समझ से प्राप्त की जा सकती है।
- कई बार हम अपने दम पर सही निर्णय नहीं ले पाते हैं। ऐसे समय में हमें सही जानकारी के लिए अपने माता-पिता, शिक्षकों या अन्य भरोसेमंद व्यक्ति की मदद लेनी चाहिए जिससे हम सही फ़ैसले ले सकें।
- सबसे जरूरी बात यह है कि बड़ा होना मजेदार और रोमांचक है और अगर हमें पता हो कि क्या करना है और कैसे निपटना है तो हम इसे बेहतर ढंग से संभाल सकते हैं।
Achhi jankari hai, adolescent ko kafi help milegi , or sbse achhi lagi ciggerate wali bat , q ki isi age me bachhe dusre ko dekh kr galat aadat seekhte hai .
Bade hone ka matlab bhi hai ki apne faile khud lena independent hona mai khud pr independent ho chahati hu lekin ghar ki problem ki bakhr se nhi kr skti maine 2021 mai up board se 12 pass hu mai doctor banna chahti thi or abhi bhi mera dream ye hi hai
Achhi jankari hai, adolescent ko kafi help milegi , or sbse achhi lagi ciggerate wali bat , q ki isi age me bachhe dusre ko dekh kr galat aadat seekhte hai .
bhut acha hai
Kya likhu?
Bhot acchi jaankari h or billkul same h jo 8th class me mere saath hua bilkul same or bhot hi achi
वाकई, यह एक सराहनीय तरकीब है। आशा है, इससे समाज में एक बदलाव लाया जा सकता है। समाज से तात्पर्य है बच्चे व उनके माता-पिता क्योंकि adoloscence के उम्र में बच्चों में कई तरह के बदलाव आते हैं, जिससे बच्चों और उनके माता-पिता को अवगत कराया जाना चाहिए और इस उम्र अंतराल में इस नए बदलाव को एक नए तरीके से appreciate कर इस बदलाव को समझा जाय और अमल किया जाय।
जहां आज के जमाने में teens को कई तरह के hormonal change से गुजरना पड़ता है जिससे उनके शरीर ही नही बल्कि उनके मनोदशा में में भी बदलाव आते हैं, वहीं माता पिता बच्चों में हुए इस बदलाव से एक अलग तरह की सोच को बना लेते हैं। ऐसे में जरूरत है कि इस बदलाव से भली-भांति अवगत करना चाहिए।
सच में, यह काम काबिल ए तारीफ़ है। आशा है, इस काम को भी आगे चलकर एक नया और मजबूत प्रारूप मिले।
Maine logo se suna hai ki teen age kafi dengerous hoti hai kya ye sach h agar ha to kaise?