मुझे फुटबॉल खेलना है पर अपनी शर्तों पर !
आइए कनिका की दुनिया में चलते हैं, जो 15 साल की फुटबॉल प्लेयर है और वो हर बार ऐसा खेलती हैं, मानो वो गेम को जी रही हो- ये उसके लिए केवल एक गेम नहीं है बल्कि लोगों की छोटी सोच के खिलाफ एक जंग है! तो आइए इस बार के फीलिंग एक्सप्रेस में कनिका की बातों को समझते हैं।
फुटबॉल की शुरुआत
हम में से ज़्यादातर लोगों ने 8वीं क्लास से फुटबॉल खेलना शुरू किया था। उसमें से कुछ लड़कियां, जो मेरी जैसी थी, फुटबॉल को लेकर बहुत एक्साइटेड थीं। अब हम 10वीं क्लास में आ गए हैं और हम बता नहीं सकते कि फुटबॉल खेलने में हमे कितना मजा आता है। हम सब एक दूसरे से सीख रहे हैं।
मैं और मेरी दोस्त स्कूल में एक ही फुटबॉल टीम में थे। हम दोनों अक्सर एक दूसरे से मिलते थे और साथ प्रैक्टिस करते थे। हमने एक साथ कई टूर्नामेंट भी खेले हैं, और हाल ही में मैंने फुटबॉल क्लब भी ज्वाइन किया है। ये गेम सच में बहुत मज़ेदार है और अभी तो इसमें सीखने के लिए भी बहुत कुछ है।
लेकिन कुछ समय से हमारी प्रैक्टिस कम हो गई है और साथ ही हमारा खेलने के प्रति उत्साह भी।
लड़के और लड़कियाँ
हमारे स्कूल में लड़कों की फुटबॉल टीम भी है, और हम उन्हें अक्सर मैच खेलते देखते हैं। मेरे स्कूल के ज़्यादातर लड़कों को फुटबॉल पसंद है और वो कई सालों से खेल रहे हैं। पर लड़कों की टीम और लड़कियों की टीम के लेवल में काफी अंतर है।
जहाँ हम कभी-कभी ड्रिबल, पास और शूट करने में संघर्ष करते हैं, लड़कों ने इनमें और कई और तरीकों में पहले से महारत हासिल कर ली है। हालांकि उनके जैसा अच्छा प्लेयर बनने की उम्मीद करना हमे बेहतर बनने की प्रेरणा देता है, लेकिन कभी कभी ये बात बहुत परेशान भी करती है।
हम अक्सर खुद को लेकर सोच में पड़ जाते हैं कि क्या हम कभी उन लोगों की तरह अच्छे प्लेयर बन पाएंगे? ईमानदारी से बताऊं तो यह थोड़ा मुश्किल लगता है। हम यह सवाल किए बिना नहीं रह सकते कि क्या हमारे पास उनसे कम क्षमताएं हैं। यही सोच हमें असल जीत पाने से रोक देती है और यही हमारे लिए एक चिंता का कारण बन जाती है।
फुटबॉल से हटके
हमें अक्सर लड़कों से अलग ट्रीट किया जाता है। हमारे स्कूल में सुबह प्रैक्टिस के वक्त हमें शॉर्ट्स नहीं पहनने दिए जाते लेकिन लड़के शॉर्ट्स पहन सकते हैं। जब हमारे पैरेंट्स ने स्कूल वालों से इस मुद्दे पर बात की तो उन्होंने हमे शॉर्ट्स पहनने की अनुमति तो देदी पर इस शर्त पर कि लड़कियां स्कूल की दूसरी बिल्डिंग में जाकर कपड़े बदलेंगी, क्योंकि स्कूल की मेन बिल्डिंग में लड़के कपड़े बदलते हैं।
अकसर गर्ल टीम की प्रैक्टिस को कैंसिल कर दिया जाता है क्योंकि लड़कों की टीम ग्राउंड में प्रैक्टिस कर रही होती है। मैं समझती हूँ कि लड़कों की टीम के पास अभी हमसे ज़्यादा अनुभव है, पर इसका ये मतलब तो नहीं कि इस वजह से हमे कम मौके दिए जाएँ?
कई लड़कियों को तो खेलने भी नहीं दिया जाता है। उनके दोस्त और फैमिली मेंबर उन्हें 10वीं के दौरान पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने के लिए बोलते हैं।
फुटबॉल और फ़ासले
लड़के अनुभवी, मेहनती हैं और अपने गेम को लेकर फोक्स्ड हैं। हम फुटबॉल में उनका आदर करते हैं और उनका सम्मान करते हैं, तो वे हम नए प्लेयर्स का सम्मान क्यों नहीं कर सकते?
दुख होता है जब अच्छा न खेलने पर हमारा मजाक उड़ाया जाता है। क्या हम इसके लायक हैं?
इस सारी नेगेटिव ऊर्जा के कारण हमारे कई साथी फुटबॉल और अन्य खेलों में रुचि खो रहे हैं। क्या उस समय में वापस जाने का कोई तरीका है, जब हमें खेल से गहरा प्रेम था?
आगे क्या?
मेरे हिसाब से हम सब अभी सीख रहे हैं। देर से शुरुआत करने के अलावा, लड़कों और लड़कियों के शरीर में भी कई सारे अंतर होते है। कई लड़कियाँ पीरियड्स के दर्द की वजह से प्रैक्टिस पर नहीं आ पाती जो मैं अच्छे से समझती हूँ।
सबसे अच्छी बात जो हर कोई कर सकता है वह है एक-दूसरे की ताकत और कमजोरियों का सम्मान करना। आप नहीं जानते कि कोई किस दौर से गुजर रहा है। एक-दूसरे को प्रोत्साहित करना और सभी के साथ अच्छा व्यवहार करना स्टीरियोटाइप को तोड़ने का सबसे अच्छा तरीका है।
आखिर गेम का मतलब सिर्फ गोल करना नहीं है, बल्कि खुद के और दोस्तों के साथ मज़े करना भी है!
गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैं। यह आर्टिकल हमारे टिनबुक एडवाइजरी बोर्ड के एक मेंबर ने लिखा है। टीएबी के बारे में ज्यादा जानने के लिए, यहां क्लिक करें.
इसके बारे में और जानने के लिए नीचे दिय गया वीडियो ज़रूर देखें :